पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

। १५२ . छञ्चत छ । । कामदेव के शत्रु, स्वभाव ही से सुजान, कृपा-निधान शिवजी मन में के बहुत ही प्रसन्न हुए और पार्वती की बहुत प्रकार से चड़ाई करके फिर बोले 3 सुनु सुस था भवानि रामचरितमानस बिमल। 3 हा भुसुण्डि वखानि सुना विहग नायक गरुड़।१२० (d) . हे पार्वती ! निर्मल. रामचरितमानस की उस पवित्र कथा को सुनो, जिसे कागभुशुण्डि ने विस्तार से कहा और पक्षिराज गरुड़जी ने सुना था। । सो संवाद उदार जेहि बिधि भा' आगे कहब। सुनहु रास अवतार चारत परम सुन्दर अनघ॥१२०॥ (३) वह उत्तम सम्वाद जिस प्रकार हुआ, उसे मैं आगे कहूँगा। अभी तुम रामचन्द्रजी के अवतार का परम सुन्दर और पाप-रहित चरित सुनो। हरि शुन नाम अपार कथा रूप अगनित अमित। मैं निज मति अनुसार कहउँ उमा सादर सुनहु।१२०। (४) | हरि के गुण और नाम अपार हैं, उनकी कथा के रूप भी अगणित और असीम हैं। हे पार्वती ! मैं अपनी बुद्धि के अनुसार कहता हूँ, आदर-पूर्वक सुनो। एम् सुनु गिरिजा हरि चरित सुहाए ॐ विपुल विसद निगमागम गाए । हरि अवतार हेतु जेहि होई के इदमित्थं कहि जाइ न सोई हे पार्वती ! सुनो, वेद और शास्त्रों ने भगवान् के सुन्दर, विस्तृत और , निर्मल चरित का गान किया है। हरि को अवतार जिस कारण से होता है, वह के कारण ‘वस यही है। ऐसा नहीं कहा जा सकता । ( क्योंकि अनेक कारण एकत्र के * होते हैं, तव अवतार होता है । ) ॐ राम अतयं बुद्धि मन वानी छ मत हमार अस सुनहि सयानी ॐ सुम तदपि संत मुनि वेद पुराना ॐ जस कछु कहहिं स्वमति अनुमाना * हे सयानी ! सुनो, हमारा मत तो यह है कि बुद्धि, मन और वाणी से । तुम् रामचन्द्रजी की तर्कना नहीं की जा सकती। पर तो भी सन्तजन, मुनि, वेद और । पुराणों ने अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार जैसा कुछ कहा है, १. हुआ । २. बस यही है ।