पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१६२

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  1. बाल- इ.

१५.६ । । संभु दीन्ह उपदेस हित नहिं नारदहि सुहान। भरद्वाज कौतुक सुलह हरि इच्छा बलवान्॥१२७॥ । यद्यपि शिवजी ने भले के लिये यह उपदेश दिया, पर नारद मुनि को वह * अच्छा न लगा । ( याज्ञवल्क्यजी कहते हैं कि ) हे भरद्वाज ! अव कौतुक ( तमाशे की रोचक बात ) सुनो । हरि की इच्छा बड़ी वलवती है। ॐ राम कीन्ह चाहहिं सोइ होई है करै अन्यथा अस नहिं कोई राम्रो संभु बचन मुनि मन नहिं भाए $ तब विरंचि के लोक सिधाए | रामचन्द्रजी जो किया चाहते हैं, वही होता है। ऐसा कोई नहीं, जो राम उसके विरुद्ध कर सके । शिवजी के वाक्य नारदजी को न सुहाये; फिर वे वहाँ राम् से ब्रह्मलोक को चले गये ।। ए एक बार करतल वर बीना ॐ गावत हरि गुन गान प्रवीना छीर सिंधु गवने मुनिनाथा की जहँ वस श्रीनिवास श्रुतिमाथा *. एक बार गान-विद्या में निपुण नारदमुनि हाथ में सुन्दर वीणा लिये हुए, * हरि-गुण गाते क्षीरसागर को गये, जहाँ वेदों के मस्तक-स्वरूप श्रीनिवास भगवान् रहते हैं। . हरषि मिलेउ उठि रमानिकेता ॐ बैठे असन रिपहि समेता । क़ बोले बिहँसि चराचर या ॐ बहुते दिनन्ह कीन्हि मुनि दाया राम लक्ष्मीनिवास भगवान् उठकर बड़े आनन्द से उनसे मिले और ऋषि के साथ आसन पर बैठ गये । चराचर के स्वामी भगवान् हँसकर बोले-हे. मुनि ! आज आपने बहुत दिनों पर दया की ।। काम चरित नारद सब भाखे ॐ जद्यपि प्रथम वरजि सि राखे अति प्रचंड रघुपति ॐ माया ॐ जेहि न मोह अस को जग जाया । यद्यपि शिवजी ने पहले ही मना कर रखा था, पर तो भी नारदजी ने कामदेव का सारा चरित्र भगवान् को कह सुनाया। रघुनाथजी की माया बड़ी ही प्रबल है । जगत् में ऐसा कौन जन्मा है, जिसे वह मोहित न कर दे। । र रूख बदन करि बचन मृदु बोले श्रीभगवान ।। है ! तुम्हरे सुमिरन ते सिटहिं मोह मार मद साल।१२८॥ । . ०५.••up-41-42-Ak८०-CJ)-२८ite; -8-12-are,<>***