पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

। शाय। ॐ नगर ( बैकुण्ठ ) से भी अधिक सुन्दर थीं। या बसहिं नगर सुंदर नर नारी % जनु बहु मनसिज' रति तनुधारी उम है तेहि पुर् बसइ सीलनिधि राजा ॐ अगनित हय गय सेन समाजा । | राम उस नगर में ऐसे सुन्दर नर-नारी वसते थे, मानो अनेक कामदेव और राम उसकी स्त्री ) रति ही ने शरीर धारण कर रक्खे हों। उस नगर में शीलनिधि राम नामक राजा रहता था। उसके यहाँ घोड़े, हाथी और सेना के समूह अनगिनत थे। राम्रो । सत सुरेस सम विभव बिलासा ॐ रूप तेज बल नीति निवासी । बिस्वमोहनी तासु कुमारी ॐ श्री विमोह जिसु रूप निहारी उसका वैभव और विलास सौ इन्द्रों के समान था । रूप, तेज, बल और * नीति का वह घर था। उसके विश्वमोहिनी नाम की एक कन्या थी, जिसका रूप देखकर लक्ष्मी भी मोहित हो जायँ ।। सोइ हरि माया सब गुन खानी ॐ सोभा तासु कि जाइ बखानी राम करइ स्वयंवर सो नृपबाला ॐ आए तहँ अगनित महिपाला राम | वह सब गुणों की खान भगवान् की माया थी । उसकी शोभा का वर्णन कैसे किया जा सकता है ? वह राजकन्या स्वयम्बर करना चाहती थी, इससे वहाँ अनगिनत राजा आये हुये थे। मुनि कौतुकी. नगर तेहिं गयऊ ॐ पुरबासिन्ह सच पूछत भयऊ सुनि सब चरित भूप गृहँ आए ॐ करि पूजा नृप मुनि वैठाए मनमौजी नारदजी उस नगर में गये और नगर-निवासियों से उन्होंने सब हाल पूछा । सब समाचार सुनकर ( मुनि ) राजा के महल में आये । राजा ने सत्कार करके उन्हें आसन पर बैठाया। में आनि देखाई नारदहि अ॒पति राजकुसारि ।। हैं। कहहु नाथ गुल दोष सब एहि के हृदयँ बिचारि ।१३०॥ राजा ने राजकुमारी को लाकर नारदजी को दिखलाया और पूछा---हे। नाथ ! आप अपने हृदय में विचार कर इसके सब गुण-दोष कहिये । देखि रूप मुनि बिरति बिसारी की बड़ी वार” लगि रहे निहारी। से लच्छन तासु बिलोकि भुलाने ॐ हृदयँ हरष नहिं प्रगट वखाने १. कामदेव । २. लाकर । ३. देर।।