पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२२३

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२२० समुहं न . ८ * संतों के मन में बड़ा त्वाब था। बन फूले हुये थे। पर्वतों के समूह मणियों से जगमगा रहे थे; और नदियाँ अमृत की धारा, बहा रही थीं। ... ..: । सो अवसर बिरंचि जब जाना ॐ चले सकल सुर साजि विमाना। राम्रो गगन विमल संकुल सुर बूथा ॐ गावहिं गुन गंधर्व बरूथा। ब्रह्मा ने ऐसी अवसर जब जाना, तब वे और सारे देवता विमान सजारामो सजाकर चले । निर्मल आकाश देवताओं के समूहों से भर गया। गंधर्वगण गुण गाने लगे। . : ::.: : . :. :.. .: रामे बरपहिं सुमन सुअंज़लि साजी की गहगहि गगन दुन्दुभी बाजी । अस्तुति करहिं नाग मुनि देवा ॐ बहु विधि लावहिं निज निज सेवा और सुंदर अंजलि भर-भरकर फूलों की वर्षा करने लगे। आकाश में घमाघम नगाड़े बजने लगे। नाग, सुनि और देवता स्तुति करने लगे और बहुत प्रकार से अपनी-अपनी सेवायें भेंट (उपहार ) करने लगे।::::::::: हो । सुर सह विनती करी पहुँच निज निज धाम।

  • जगनिवास घ्यु भैअखिल लोक बिलम १९१

देवगण विनती करके अपने-अपने धाम को चले गये । समस्त लोकों को । शान्ति देने वाले जग के आधार प्रभु प्रकट हुये । ए छंद-ए प्रगट कृपाल परम दयाल औसल्या हितकारी। ये | हरषित महतारी मुनि मनहारी अदभुत रूप बिचारी ॥ राम लौचन अभिमा तनु घनस्यामा निजआयुधभुजचारी। अषन बलशाल नयन बिसाला सोभासिँधु शरीः ॥ ॐ | परम दयालु और कौशल्या के हितकारी कृपालु ( राम ) प्रकट हुये ।। ॐ मुनियों के मन को हरने वाला उनका अद्भुत रूप देखकर माता आनन्दित हो । गई। नेत्रों को आनन्द देने वालाः मेघ की तरह श्याम शरीर, चारों भुजाओं में एम) 6 ( शंख, चक्र, गदा, पद्म ) शस्त्र धारण किये हुये, गले में पाँच तक लम्बी रामो माला, बिशाल नेत्र, शोभा के समुद्र तथा खर राक्षस के. शत्रु को देखकर, .. रूह ढुइ र जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि अनंताः। ॐ | साया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनेता ॥