पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२२४

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ळी :..बाल-छाछ , , " * २२१ । | कला सुखसागर सब गुनगर जेहि गावहिं श्रुति संता। एम्सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीमंता। ये ने दोनों हाथ जोड़कर माता कहने लगी-हे अनन्त ! मैं किस तरह ॐ तुम्हारी स्तुति करू ? वेदों और पुराणों ने तुमको माया, गुण और ज्ञान से परे एम) और सीमा-रहित बताया है । वेद और संतजन करुणा और सुखों का समुद्र, रान) * सब गुणों का धाम बताकर जिनका गान करते हैं, वही भक्तों के प्रेमी, लक्ष्मीराम) कान्त मेरे कल्याण के लिये प्रकट हुये हैं। ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै । मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै। या उपजा जब श्याना प्रभु मुसुकाना चरितबहुतबिधिकीन्हचहै। कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार चुत प्रेम लहै । धू : वेद जिसके रोम-रोम में माया से निर्मित अनेकों ब्रह्माण्ड बतलाते हैं, वह ए मेरे गर्भ में रहे, इस हँसी की बात के सुनने पर धीर पुरुर्षों की बुद्धि भी स्थिर से नहीं रह सकती । जब माता को ज्ञान हुआ, तब प्रभु मुसकुराये । वह बहुत से प्रकार के चरित करवा चाहते हैं । अतः उन्होंने पिछले जन्म की सुन्दर कथा कहकर समझाया, जिससे वह पुत्र का प्रेम प्राप्त करे । । माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा । एम् कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूप। ने सुनि बचन सुजानी रोदन ठाना होइ बालक सुरळूण । ने हैं। यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहि अवकूपा ॥ माता की बुद्धि बदल गई, तब वह फिर बोली-हे पुत्र ! यह रूप छोड़कर अत्यन्त प्रिय बाल-लीला करो । ( मेरे लिये ) यह सुख परम अनुपम है । यह मि) ॐ वचन सुनकर देवताओं के स्वामी सुजान राम ने बालक होकर रोना शुरू किया । (तुलसीदास कहते हैं) जो जन इस चरित्र का गान करते हैं, वे भगवान् की राम के पद पाते हैं और फिर संसाररूपी कूप में नहीं गिरते ।