पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२२७

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। २२४ , ८६च्छा ! | नाना । ॐ कैकय सुताः सुमित्रा दोऊ की सुन्दर सुत जनमत भईं ओङ वह सुख संपति समय समाजा ॐ कहि न सकइँ सारद अहिराजा

कैकेयी और सुमित्रा इन दोनों ने भी सुन्दर पुत्रों को जन्म दिया। उसे राम) सुख, सम्पत्ति, समय और समाज का वर्णन सरस्वती और शेष भी नहीं कर

सकते।. ....... ... ... . .. .. . ... . एम) अवधपुरी सोहह एहि । भाँती ॐ प्रभुहि मिलन आई जनु राती ॐ देखि भानु जनु मन सकुचानी ॐ तदपि बनी संध्या अनुमानी '; अवधपुरी इस प्रकार शोभित हुई, मानो रात्रि प्रभु से मिलने के लिये आई थी पर सूर्य को देखकर मानो मन में सकुचा गई। फिर भी ऐसा जान * पड़ता है कि वह.( संकोच के सारे )..संध्या बन गई है। ...... । अगर धूप बहुजनु अँधियारी ॐ उड़इ. अवीर मनहुँ अरुनारी ॐ मंदिर मनि समूह जनुः तारा नृप गृह कलस सो इंदु उदारा राम) : ' अगर की धूप का बहुत-सा धुवाँ सानो ( संध्या का) अन्धकार है और राम ऊँ जो.अवीर उड़ रहा है, वह ललाई है। महलों में जो मणियों के समूह हैं, वे कैं मानो तारागण हैं, और : राजा के सहुल का जो कलश है, वही.मानो दिव्य । चन्द्रमा है: :::::::: :: :: :: :: :: ::: भवन वेद धुनि अति मृदु बानी छ जनु खग मुखर समय जनु सानी कौतुक देखि पतंग भुलाना के एक मास तेइ जातं न जाना .. राजभवन में जो अति कोमल वाणी से वेदध्वनि हो रही है, वह मानो । पक्षियों की चहचहाहट है, जो ( सन्ध्या के ) समय में सनी हुई है। यह कौतुक देखकर सूर्य भी भूल गया । एक महीना बीत गया और उसे पता । न चला। . . . . :: .. । हो । मास दिवस कर दिवस भी मरम ने जानइ कोइ। राम्) pथ समेत रबिथाकेउ निशा कुवन विधि होई॥१९५॥ राम्रो .. एक महीने का एक दिन हुआ । कोई इस मर्म को नहीं जानता । सूर्य सुमो अपने रथ-सहित वहीं रुक गया, तो रात किस प्रकार होती ? [यहाँ ‘मास दिवस' का अर्थ बारह दिन भी हो सकता है । पुत्र-जन्म पर १. वे भी । २. बन गई। |