पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२३९

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। २३६ चॉट मन ॐ कभी आपने नहीं की। आज किस कारण से आपका आना हुआ ? कहिये, मैं । रा) उसे पूरा करने में देरी नहीं लगाऊँगा। ॐ असुर समूह सतावहिं मोही ॐ मैं जाचन आयउँ नृप तोही फू अनुज समेत देहु रघुनाथा ॐ निसिचर बध मैं होब सनाथा' | मुनि ने कहा—हे राजन् ! राक्षसों का समूह मुझे दुःख देती है। इसी लिये मैं तुमसे कुछ माँगने आया हूँ। छोटे भाई-सहित रामचन्द्रजी को मुझे दो। राक्षस का वध होने पर मैं सनाथ हो जाऊँगा। है , देहु थूप मन हरषित तजहु मोह अयान । -- धर्म सुजस प्रभु तुम कौं इन्ह कहँ अति कल्यान ॥ सुना हे राजन् ! प्रसन्न मन से दो। मोह और अज्ञान छोड़ दो। हे स्वामी ! तुमको धर्म और सुयश प्राप्त होगा और इनका परम कल्याण होगा। म) सुनि राजा अति अप्रिय बानी ॐ हृदय कंप मुख दुति कुम्हिलानी हैचौथेपन पायउँ सुत चोरी ॐ विश् बचन नहिं कहेहु बिचारी (राम) इस अत्यन्त अप्रिय वाणी को सुनकर राजा का हृदय काँप उठी और उनके एम है मुख की कांति फीकी पड़ गई । उन्होंने कहा--हे ब्राह्मण ! मैंने चौथेपन में चार राम पुत्र पाये हैं, अपने विचारकर वचन नहीं कहा। । माँगहु भूमि धेनु धन कोसा ॐ सरबस देउँ आजु सह रोसा देह प्रान ते प्रिय कछु नाहीं ॐ सोउ मुनि देउँ निमिष एक माहीं । | हे मुनि ! आप पृथ्वी, गाय, धन और खजाना माँग लीजिये। मैं आज बड़े हर्ष के साथ अपना सर्वस्व दे दूंगा। देह और प्राण से अधिक प्यारा कुछ भी नहीं होता, मैं उसे भी एक पल में दे दूंगा । सव सुत प्रिय मोहि प्रान की नाईं ॐ राम देत नहिं बनइ गुसाईं एम कहँ निसिचर अति घोर कठोरा छ कहँ सुंदर सुत परम किसोरा मुझे सभी पुत्र प्राण की तरह प्यारे हैं, तो भी हे महाराज ! राम को देते नहीं बनता । कहाँ अत्यन्त भयानक और क्रूर राक्षस और कहाँ बिलकुल सुकुमार मेरे सुन्दर पुत्र ।। १. सुरक्षित । २. हर्ष । |