पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२५६

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  1. . छाल-इश | कछुके ऊँचि सब भाँति सुहाई ॐ वैटहिं नगर लोग जहँ जाई सुमो तिन्हके निकट विसाल सुहाए $ धवल धाम वहु चरन बनाए पुदी

| वह कुछ ऊँचा था और सब प्रकार से सुन्दर था, जहाँ जाकर नगर के लोग हैं। सुमो बैठेंगे। उन्हीं के पास बड़े-बड़े सफ़ेद सुन्दर घर अनेक रंगों के बनाये गये हैं। जहँ बैठे देखहिं सब नारी ॐ जथाजोगु निज कुल अनुहारी' पुर चालक कहि कहि मृदु बचना ॐ सादर प्रभुहि देखावहिं रचना जहाँ अपने-अपने कुल के अनुसार सन्न स्त्रियाँ बैठकर देखेंगी। नगर के बालक कोमल वचन कह-कहकर आदरपूर्वक प्रभु को यज्ञशाला की रचना रामे) दिखलाते हैं। - सब सिसु एहि मिसु प्रेमबस परसि मनोहर गात।। छ । तनु पुलकहिं अति हरछ हियँ देखि देखि दोउ श्रात् ॥ | इसी बहाने प्रेम के वश होकर राम के सुन्दर शरीर को छूकर सब बच्चों ॐ का शरीर पुलकित हो रहा है और दोनों भाइयों को देखकर उनके हृदय में एम) अत्यन्त हर्ष हो रहा है। सिसु सब राम प्रेम बस जाने ॐ प्रीति समेत निकेत वखाने राम निज निज रुचि सब लेहिं बोलाई ॐ सहित सनेह जाहिं दोउ भाई तो सब बालकों को राम ने प्रेम के वश में जानकर प्रीति-सहित यज्ञभूमि के । स्थानों की प्रशंसा की । वे सब अपनी-अपनी रुचि के अनुसार उन्हें बुला लेते हैं और दोनों भाई स्नेह के साथ उनके पास चले जाते हैं। राम देखावहिं अनुजहि रचना ॐ कहि मृदु मधुर मनोहर वचना राम) लव निमेष महँ भुवननिकाया ॐ रचे जासु अनुसासन माया * कोमल और मधुर वचन कहकर राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण को यज्ञरामो भूमि की रचना दिखलाते हैं। जिसकी आज्ञा पाकर माया क्षणभर में ब्रह्मांडों के समूह रच डालती है। एम) भगति हेतु सोइ दीनदयाला ॐ चितवत चकित धनुप मख साला कौतुक देखि चले गुरु पाहीं ॐ जानि विलंब त्रास मन माहीं । १. अनुसार।