पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२७०

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  • २६७ है। अन्धकार को नहीं टोल सकते। रात बीती हुई जानकर जैसे कमल, चक्रवाक, होम, भौंरा और तरह-तरह के पक्षी हर्षित हो रहे हैं

ऐसेहिं प्रभु सब भगत तुम्हारे ॐ होइहहिं टूटे धनुष सुखारे हैं रामू उयउ भालु बिनु स्रम तम नासा ॐ दुरे नखत जग तेजु प्रकासा राम हे प्रभो ! इसी प्रकार आपके सब भक्त धनुष टूटने पर सुखी होंगे। सूर्य । । उय हुआ; अन्धकार बिना परिश्रम ही के नष्ट हो गया; तारे छिप गये, संसार । में तेज का प्रकाश हो गया। * रबि निज उदय व्याज रघुराया ॐ प्रभु प्रतापु सब नृपन्ह दिखाया है सम) तव भुज बल महिमा उदघाटी' ॐ प्रगटी धनु विघटन परिपाटी सिंह) हे रामचन्द्र ! सूर्य ने अपने उदय के बहाने सब राजाओं को प्रभु (आप) राम) का प्रताप दिखलाया है। आपकी भुजाओं के बल की महिमा को खोलकर ) औं दिखाने के लिये ही धनुष तोड़ने की प्रथा प्रकट हुई है। बंधु बचन सुनि प्रभु मुसुकाने से होइ सुचि सहज पुनीत नहाने राम नित्य क्रिया करि गुरु पहँ ये 5 चरन सरोज सुभग सिर नाये भाई का वचन सुनकर प्रभु रामचन्द्रजी मुसकुराये। फिर स्वभाव ही से है ॐ पवित्र राम ने शौच से निवृत्त होकर स्नान किया। नित्य-कर्म करके वे गुरु के * * पास आये । और उन्होंने गुरु के सुन्दर चरण-कमलों में सिर नवाया। सतानंद तव जनक बोलाये ॐ कौशिक मुनि पहिं तुरत पठाये ॐ जनक विनय तिन आनि सुनाई के हरषे बोलि लिये दोउ भाई । तब जनक ने शतानन्द को बुलाया और उन्हें तुरन्त ही विश्वामित्र मुनि के पास भेजा । उन्होंने आकर जनक का निवेदन कह सुनाया। विश्वामित्र आनन्दित हुये और उन्होंने दोनों भाइयों को बुलाया। * । सतानन्द पद बन्दि प्रभु बैठे गुरु पहिं जाई ।। - चलहु तात मुनि कहेउ तब पठवा जनक बोलाइ।२३६ शतानन्द के पद की वन्दना करके प्रभु रामचन्द्रजी गुरु के पास जा बैठे। । तब मुनि ने कहा--हे तात ! चलो, जनक ने बुला भेजा है। * १. खोलकर ।