पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२७७

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। २७४ , मंच व् . | ऐसी कुहकर अच्छे राजा प्रेम-मग्न हो गये और राम का अनुपम रूप में देखने लगे। देवता आकाश में विमानों पर चढ़े हुये दर्शन कर रहे हैं, फूल बरसा में ॐ रहे हैं और सुन्दर गान कर रहे हैं। णम् | जानि सुअवसरु सीय तब पठई जनः बोलाई । चतुर सखी सन्दुर सक्कल सादर चलीं लवाइ ॥२४६॥ । तब सुअवसर जानकर जनक ने सीता को बुला भेजा। सब चतुर और ॐ सुन्दर सखियाँ आदर-सहित उन्हें लिवा चलीं। सिय सोभा नहिं जाइ वखानी ॐ जगदंबिका रूप गुन खानी । उपमा सकल मोहि लघु लागी ॐ प्राकृत नारि अंग अनुरागीं । | सीता की शोभा का वर्णन नहीं हो सकता । वे जगत् की माता और रूप और गुणों की खान हैं। मुझे उनके लिये सब उपमायें तुच्छ लगती हैं, क्योंकि ॐ वे लौकिक स्त्रियों के अङ्गों से अनुराग रखने वाली हैं। ॐ सिय वरनिअ तेइ उपमा देई ॐ कुकवि कहाइ अजसु को लेई हैं। राम) जौं पटतरिअ तीय महँ सीया ॐ जग असि जुबति कहाँ कमनीया । सीता के वर्णन में उन्हीं उपमाओं को देकर कौन कुकवि कहलाये और राम) अपयश ले । यदि साधारण स्त्रियों से सीता की तुलना की जाय, तो संसार में राम ऐसी सुन्दर युवती हैं ही कहाँ ? [ काव्यलिङ्ग अलङ्कार ] गिरा सुखर तनु अरध भवानी रति अति दुखित अतनु पति जानी विष वारुनी' बंधु प्रिय जेही ॐ कहिअ रमा सम किमि बैदेही | सरस्वती तो बकवादिनी हैं, पार्वती अर्धाङ्गिनी हैं, कामदेव की स्त्री रति * पति को विना शरीर को जानकर बहुत दु:खित रहती है । और जिसे विष और न 'शराव ऐसे भाई प्रिय हैं, उन लक्ष्मी के समान सीता को कैसे कह सकते हैं ? सम) जौं छवि सुधा पयोनिधि होई ॐ परस रूप मय कच्छप सोई ॐ सोभा रजु मंदरुसिंगारू ॐ मथइ पानि पंकज निज मारू राम यदि छविरूपी अमृत को समुद्र हो, अत्यन्त रूप ही कच्छप हो, शोभा। रूपी रस्सी और शृङ्गार पर्वत हो और स्वयं कामदेव अपने कर-कमल से मथे--- १. शराब ।