पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

। २८६ . अचछ जुन राम ने सब जान लिया । सीता को देखकर उन्होंने धनुष की ओर कैसे ताका, ॐ में, जैसे गरुड़ छोटे साँप की ओर देखता है। * लषन लखेउ रघुबंस मनि ताकेउ हर कोदंड। पुलकि गात बोले बचन चरन चाहिं ब्रह्मांड ।२५६ |. लक्ष्मण ने देखा कि रघुवंश के शिरोमणि रामचन्द्रजी ने शिवजी के धनुष की ओर ताका है, तो वे पुलकित होकर ब्रह्मांड को पैरों से दबाकर बचन बोलेदिसि कुंजरहु कमठ अहि कोला ॐ धरहु धरनि धरि धीर न डोला । राम चहहिं संकर धनु तोरा के होहु सजग सुनि आयसु मोरा । एम) हे दिग्गजो ! हे कच्छप ! हे शेष ! हे वाराह ! धीरज धरकर पृथ्वी को ॐ थामे रहो, जिससे यह हिले नहीं। क्योंकि राम शिवजी का धनुष तोड़ना चाहते हैं राम) हैं। मेरी आज्ञा सुनकर सब सावधान हो जाओ। ॐ चाप समीप रायु जब आए ॐ जर नारिन्ह सुर सुत मनाए । राम सच कर संसउ अरु अग्यानू % मंद महीपन्ह कर अभिमानू नामों राम जब धनुष के पास आये, तब सब पुरुष-स्त्रियों ने देवताओं और हो अपने-अपने पुण्यों को सनाया। सब का संदेह और अज्ञान, नीच राजाओं का ॐ अभिमान, भूगुपति केरि गरव गरुआई के सुर मुनिबरन्ह केरि कादराई । सिय कर सोच जनक पछितावा ® रानिह कर दारुन दुख दावा । | परशुराम के गर्व की शुरुता, देवताओं और बड़े-बड़े मुनियों की कातरता, सीता का सोच, जनक का पश्चात्ताप, रानियों के दारण दु:ख का दावानल, संभु चाप बड़ बोहितु पाई ॐ चढ़े जाइ सब संगु बनाई। राम बाहु वल सिंधु अपारू ॐ चहत पारु नहिं कोऊ कनहारू । ये सब शिवजी के धनुषरूपी बड़े जहाज़ को पाकर, सब संग बनाकर उस ॐ पर जा चढ़े। ये राम की भुजाओं के बल के अपार समुद्र के पार जाना चाहते हैं, पर कोई केवट नहीं है। [ प्रथम तुल्ययोगिता अलंकार ] एम् । राम विलोके लोग सब चित्र लिखे से देखि। ' चितई सीय कृपायतन जानी बिकल बिसेखि।२६० १. दुवाकर । २. जहाज । ३. केवट, कर्णधार ।।