पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२९७

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। २९४ . न ८ है। सीस जटा ससि बदनु सुहावा ॐ रिस वस कछुक अरुन होइ आवा लामो भृकुटी कुटिल नयन रिस राते ॐ सहजहुँ चितवत मनहुँ रिसाते सिर पर जटा है; मुख चन्द्रमा की तरह सुन्दर है, पर क्रोध के मारे कुछ गुम्वा लाल हो आया है। भौहें टेढ़ी और नेत्र क्रोध से लाल हैं। साधारण रीति से । देखते हैं तो भी ऐसा जान पड़ता है मानो क्रोध कर रहे हैं। रामू वृषभ कंध उर वाहु विसाला ॐ चारु जनेउ माल मुंगछाला राम कटि मुनि वसन तून दुइ बाँधे ॐ धनु सर कर कुठारु कल कॉधे वैल की तरह उनके कंधे हैं, छाती और भुजायें विशाल हैं। सुन्दर यज्ञोॐ पवीत और माला पहने और मृगचर्म लिये हैं । कमर में वल्कल और दो तरकस * * बँधे हुये हैं, हाथ में धनुष-बाण और सुन्दर कंधे पर फरसा लिये हुये हैं। एम) सांत वेष करनी कठिन बन न जाइ सरू। यो धरि मुनि तनु जनु बीर रसु आयेउ जहँ सब भूपा२६८ । | वेश तो शांत, पर कर्म भयानक; उनके स्वरूप का वर्णन किया ही नहीं * जा सकता। मानो वीर-रस ही सुनि को शरीर धारण करके जहाँ सब राजा लोग * ए हैं, आ गया हो। । देखत भृगुपति बेषु कराला ॐ उठे सकल भय विकल भुला के पितु समेत कहि निज निज नामा $ लगे करन सब दंड प्रनामां एम) परशुराम का भयानक वेष देखकर सब राजा लोग भय से व्याकुल होकर राम के उठ खड़े हुये, और पिता-सहित अपना नाम बता-बताकर वे सब दंडवत प्रणाम। करने लगे। ॐ जेहि सुभायँ चितवहिं हितु जानी ॐ सो जानइ जनु अाइ खुटानी उनु जनक बहोरि आइ सिरु नावा ॐ सीय बोलाई प्रनाम करावा । परशुराम हित जानकर सहज भी जिसकी ओर देख लेते हैं, वह समझता या है मानो उसकी आयु ही क्षीण हो गई। फिर जनक ने आकर सिर नवाया और । सीता को बुलाकर प्रणाम कराया। ए आसिप दीन्हि सखीं हरपानी निज समाज लै : गई सयानी । विस्वामित्रु मिले पुनि आई ॐ पद सरोज मेले दोउ भाई ) १. आयु, उम्र ।।