पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३२२

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तव उन्होंने भिक्षुक को बुलवा लिया और उन्हें करोड़ों प्रकार की निछावरे दीं । ( उन्होंने आशीर्वाद दिये-) चक्रवर्ती राजा दशरथ के चारों पुत्र ॐ चिरजीवि हों । कहत चले पहिरे पट नाना ॐ हरषि हुने गहगहे निसाना के समाचार सब लोगन्हि पाये ॐ लागे घर घर होन वधाये एम) वे यह कहते हुये और अनेक प्रकार के सुन्दर वस्त्र पहन-पहनकर चले । ॐ आनन्दित होकर नगाड़े वालों ने नगाड़ों पर ज़ोर से चोटें लगाई। जब यह सब राम) समाचार लोगों ने पाया, तब घर-घर बधावे होने लगे । ॐ भुवन चारि दस भरा उछाहू % जनक सुता रघुवीर विशाहू सुनि सुभ कथा लोग अनुरागे ॐ मग गृह गली सँवारन लागे | चौदह भुवनें में उत्साह भर उठा कि जनकजी की कन्या से रामचन्द्रजी का विवाह होगा । यह शुभ समाचार पाकर लोग प्रेम-मग्न हो गये, और रास्ते, है घर और गलियाँ सजाने लगे। । जद्यपि अवध सदैव सुहावनि की राम पुरी मंगलमय पावनि । म तदपि प्रीति के रीति सुहाई ॐ मंगल रचना उची बनाई ॐ यद्यपि अयोध्या सदा सुहावनी है, क्योंकि वह राम की कल्याणमयी और रामो पवित्र पुरी है, तो भी प्रीति की सुहावनी रीति के अनुसार मंगल-रचना से बह राम) ॐ सजाई गई। ध्वज पती पट चामर चारू ॐ छावा परम विचित्र बजारू ॐ कनक कलस तोरन सनिजाला ॐ हरद दूब दधि अच्छत साला ध्वजा, पताका, परदे और सुन्दर चँवरों से सारा बाज़ार बहुत सुन्दर छाया हुआ है। सोने के घड़े, तोरण, मणियों के समूह, हलदी, दुच, दही, अक्षत और रामो मालाओं से मंगल मय निज निज भवन लोगन्ह रचे वनाई ।। बौथी सींची चतुरस्' चौकें चारू पुराइ ॥२६॥ लोगों ने अपने-अपने घरों को सजाकर मंगलमय बना दिया और गलियों को चतुरसम से सींचा और ( द्वारों पर ) सुन्दर चौक पुराये | राम) १. चन्दन चार भाग, केसर तीन भाग, कस्तूरी दो भाग और कपूर तीन भाग से बना हु ए कि एक सुगन्धित द्रव, अरगजा ।