पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३२४

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छ । . ( नन्छ । | फिर राजा ने भरत को बुला लियो । ( और कहा कि ) जाकर घोड़े, हाथी और रथ सजाओ। रामचन्द्र की वरात में जल्दी चलो | यह सुनते ही दोनों भाई ॐ आनन्द से पूर्ण हो गये। श्रत सकल साहनी' बोलाये ॐ आयसु दीन्ह मुदित उठि धाये के रचि रुचि जीन तुरग तिन्ह साजे ॐ वरन वरन वर चाजि विराजे भरत ने घुड़साल के सब अध्यक्षों को बुलाया और उनको आज्ञा दी । वे । प्रसन्न होकर उठ दौड़े। उन्होंने रुचि के साथ ज़ीन केसकर घोड़े सजाये । रंगए रंग के उत्तम घोड़े शोभित हो गये ।। सुभग सकल सुठि चंचल करनी ॐ अय” इव जरत धरत पग धरनी नाना जाति न जाहिं बखाने के निदरि पवनु जनु चहत उड़ाने । सब घोड़े बड़े ही सुन्दर और चञ्चल चाल वाले हैं। वे धरती पर ऐसे पैर में रखते हैं जैसे जलते हुये लोहे पर रखते हों। अनेकों जातियों के घोड़े हैं जिनको वर्णन नहीं हो सकता। वे मानो हवा का निरादर करके उड़ना चाहते हैं। तिन्ह सब छयल भये असवारा ॐ भरत सरिस वय राजकुमारा लामो सर्व सुंदर · सब भूषनधारी व कर सर चाप तून कटि भारी उन घोड़ों पर भरत के समान आयु वाले सव बैल-छवीले राजकुमार सवार हुये। ये सभी सुन्दर हैं और सभी अभूिषण धारण किये हुये हैं। उनके हाथों में । बाण और धनुष हैं, और कमर में भारी तरकस बँधे हैं। एम् । छरे छबीले छयल सब सूर सुजान नवीन् । म) - जुग पदचर' असवार प्रति जेसि कला प्रवीन।२९८ सभी चुने हुये छैल छबीले, बहादुर, चतुर और नवयुवक हैं। प्रत्येक सवार राम) के साथ दो पैदल सिपाही हैं, जो तलवार चलाने की कला में बड़े निपुण हैं। । बाँधे विरद वीर रन गाढ़े छ निकसि भए पुर बाहर ठाढ़े । फेरहिं चतुर तुरग गति लाना हरपहिं सुनि सुनि पनव निसाना ॐ बड़े-बड़े युद्ध में पाई हुई कीर्ति से प्रशंसित वे वीर नगर से निकलकर । बाहर जा खड़े हुये । वे चतुर अपने घोड़ों को तरह-तरह की चालों से फेर रहे हैं । ॐ और भेरी और नगाड़े की आवाज़ सुन-सुनकर अनिन्दित हो रहे हैं। १. घुड़साल को अध्यक्ष । २. लोहा ।