पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३४१

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ॐ ३३८ च्या मा . ६ ॐ मनोहर भाई साथ में सुशोभित हैं, जो चंचल घोड़ों को नचाते हुये चले के जा रहे हैं। राजकुमार श्रेष्ठ घोड़ों को दिखला रहे हैं। और बंदीजन विरुदावली ॐ सुना रहे हैं। एम) जेहि तुरंग पर रामु बिराजे गति बिलोकि खग नायकु लाजे । कहि न जाइ सव भाँति सुहावा $ वाजि वेषु जनु कामं बनावा के रामो जिस घोड़े पर राम विराजमान हैं, उसकी चाल देखकर गरुड़ भी लजा एम) में जाते हैं। वह सब प्रकार से सुहावना है, उसका वर्णन नहीं हो सकती। सानो राम्रो कामदेव ही ने घोड़े का वेष धारण कर लिया हो । ॐ छंद-जनु बाजि बेषु बनाइ मनसिजु रास हित अति सोहई। ॐ आपने बय बल रूप गुन गति सकल भुवन बिमोहई ॥ जगमगत जीन जराव जोति सुमोति सनि मानिक लगे । सुनो किंकिनिललाम लगामुललित बिलोकि सुर नर मुनि ठगे। मानो राम के लिये कामदेव घोड़े का वेष बनाकर बहुत शोभित हो रहा है राम) है। वह अपनी आयु, बल, रूप, गुण और गति से सब लोकों को मोहित कर रामा रहा है। उस पर जड़ाऊ जीन जगमगा रहा है, जिसमें सुन्दर चमक वाले. म) मोती, मणि और माणिक्य लगे हैं। उसकी सुन्दर घंटियों वाली ललित लगाम (राम) हैं देखकर देवता, मनुष्य और मुनि सभी ठगे जाते हैं। - प्रभु मनसहि लयलीन मनु चलत बाजि छबि पाव। ए भूषित उड़न तड़ितघनु जलु बर बरहि नचाव३१६ ) प्रभु के मन से मन मिलाये चलता हुआ घोड़ा बड़ी शोभा पा रहा है। मानों तारागण तथा बिजली से अलंकृत मेघ सुन्दर मोर को नचा रहा हो। ॐ जेहि वर बाजि रामु असवारा ॐ तेहि सारदउ न बरनै पारा ॐ ख) संकरु राम रूप अनुरागे ॐ नयन पंचदस अति प्रिय लागे जिस श्रेष्ठ घोड़े पर राम सवार हैं, उसका वर्णन सरस्वती भी नहीं कर एम् सकतीं । शिवजी राम के रूप में ऐसे अनुरक्त हुये कि उन्हें अपने पन्द्रह नेत्र । बहुत ही प्यारे लगने लगे। | १. मोर !