पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३५६

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ऊँ : राम के विवाह की विधि जिस प्रकार वर्णन की गई, उसी विधि से सब राजकुमार विवाहे गये। दहेज इतना अधिक दिया गया कि वह कहीं नहीं - जा सकता । सारा मण्डप सोने और मणियों से भर गया था। (णमो कंबल बसन बिचित्र पटोरे की भाँति भॉति बहु मोल न थोरे ॐ गज रथ तुरग दास अरु दासी ॐ धेनु अलंकृत कामदुहा सी है रामा कम्बल, वस्त्र और तरह-तरह के अद्भुत रेशमी कपड़े जो बड़े - कीमती थे धू और संख्या में भी कम नहीं थे, तथा हाथी, रथ, घोड़े, दास, दासी और भूषणों • राम से सजी हुई कामधेनु-सी गायें । । बस्तु अनेक करिअ किमि लेखा ॐ कहि न जाइ जानाहिं जिन्ह देखा। * लोकपाल अवलोकि सिहाने $ लीन्ह अवधपति सर्बु सुख माने ( आदि ) अनेकों वस्तुओं की गिनती कैसे की जाय १ कुछ कहा नहीं जा ॐ सकता । जिन्होंने देखा है, वहीं जानते हैं। उन्हें देखकर लोकपाल भी सिहा रहे ती हैं। राजा दशरथ ने सबको सुखपूर्वक स्वीकार किया। | दीन्ह जाचकन्हि जो जेहि भावा के उबरा सो जनवासहिं आवा राम तब कर जोरि जनक पृदु वानी $ बोले सव वरात सेनानी राजा दशरथ ने दहेज की चीजें याचकों को, जो जिसे पसन्द आई, बाँट एका दीं। जो बच गई, वह जनवासे में आईं। तब जनकजी हाथ जोड़कर सारी जन चास को सम्मान करते हुये कोमल वाणी से बोले---- राम्या छंद-सलमानि सकल बराल आदर दान बिनय बड़ाई है। पुमो प्रमुदित महा मुनि बृन्द बंदे पूजि प्रेम लड़ाई' कै ॥ | सिरु लाइ देव मन्नाह सब सुन कहत कर संपुट किएँ। * सुर साधु चाहत भाउ सिंधु कितोष जल अंजलि दिएँ। आदर, दान, विनय और बड़ाई से सारी बरात का सम्मान करके राजा ) ॐ ने हर्ष-सहित प्रेम उँडेलकर बड़े-बड़े मुनियों के समूह की पूजा और वन्दना की। होम, सिर नवाकर, देवताओं को मनाकर, राजा हाथ जोड़कर सब से कहने लगे--- ॐ देवता और साधु तो भाव ही चाहते हैं, पर क्या जल की एक अंजलि से कहीं म) समुद्र संतुष्ट हो सकता है ? । १. बँदेलकर ।।