पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३५८

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- - ३५५ के मङ्गल गीत गाती हुईं दुलहों और दुलहिनियों सहित सवको लिवाकर कोईर राम) को चलीं।। का पुनि पुनि रामहिं चितवसिय सचति सन सकुचै न GE हरत सुनोहर सीन छवि प्रेस पिसे नैन ॥३२६।। " सीता राम को बार-बार देखती हैं और सकुचा जाती हैं, पर मन नहीं है सकुचाती । प्रेम के प्यासे उनके नेत्र सुन्दर मछलियों की शोभा को हर रहे हैं। राम्रो स्याम सरीरु सुभायँ सुहावन के सोभा कोटि मनोज लजावन * जीव जुत पद कमल सुहाए % मुनि मन मधुप रहत जिन्ह छाए। हैं : राम का साँवला शरीर स्वभाव ही से सुन्दर है। उनकी शोभा करोड़ों कामदेव को लजाने वाली है। महावर से युक्त दोनों कमल ऐसे चरण सुहावने लगते हैं जिन पर मुनियों के मन रूपी भौंरे सदा मँडराया करते हैं। होम, पीत पुनीत मनोहर धोती ॐ हरत चाल रवि दामिनि जोती' ॐ कल किंकिनि कटिसूत्र मनोहर # वाहु विसाल विभूपन सुंदर एम) पीले रंग की सुन्दर पवित्र धोती प्रातः काल के सूर्य और बिजली की । चमक को हर रही है। कमर में सुन्दर तगड़ी और कटिसूत्र है। उनकी विशाल भुजाओं में सुन्दर गहने हैं ।। ॐ पीत जनेउ महा छवि देई को कर मुद्रिका चोरि चितु लेई सोहत व्याह साज सव साजे ॐ उर अायत भूपण उर राजे । पीला जनेऊ बड़ी छवि दे रहा है। हाथ की अँगूठी चित्त को चुराये ले रही है। व्याह के सब साज सजे हुये वे शोभा पा रहे हैं । चौड़ी छाती है, उस * पर गले के सुन्दर गहने सुशोभित हैं। पियर उपना’ काँखा सोती ® दुहुँ शॉवरन्हि लगे मनि मोती राम नयन कमल कल कुंडल काना वदनु सकल सौन्दर्ज निधाना | पीले रंग के दुपट्टे को (जनेऊ की तरह ) कॉस्वासोती डाले हैं। उसके ए दोनों छोरों पर मणि और मोती लगे हैं। कमल के समान उनके नेत्र हैं, कानों में सुन्दर कुण्डल हैं और मुख तो सारी सुन्दरता का ख़ज़ाना ही है। १. ज्योति । २. चौड़ी । ३. पीला । ४. दुपट्टा ।।