पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३६५

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३६२ अच्छf . . है। इस प्रकार बहुत दिन बीत गये, मानो बराती स्नेह की रस्सी से बँध म) गये हैं। तब विश्वामित्रजी और शतानन्दजी ने जाकर राजा जनक को * समझाकर कहाणमा अब दसरथ कहँ आयसु देहू के जद्यपि छाड़ि न सकहु सनेहू भलेहिं नाथ कहि सचिव बोलाये ॐ कहि जयजीव सीस तिन्ह नाये । यद्यपि आप स्नेह-वश उन्हें नहीं छोड़ सकते, तो भी अब दशरथजी को (राम) । आज्ञा दीजिए। ‘हे नाथ ! बहुत अच्छा' कहकर जनकजी ने मन्त्रियों को बुलवाया। ए। वे आये और जयजीव' कहकर उन्होंने मस्तक नवाया । अवधनाथु चाहत चलन भीतर करहु जनाउ।। - भये प्रेम बस सचिव सुनि विप्र सभासद राउ॥३३२ जनकजी ने कहा—अयोध्यानाथ चलना चाहते हैं, भीतर (रनिवास में ) * खबर कर दो। यह सुनकर मन्त्री, ब्राह्मण, सभासद और राजा जनक सभी प्रेम । के वश हो गये। ने पुर् बासी सुनि चलिहि बराता ॐ पूछत विकल परसपर बाता सत्य गवन सुनि सव विलखाने ॐ मनहुँ साँझ सरसिज सकुचाने | राम पुरवासियों ने सुना कि बरात जायगी, वे व्याकुल होकर एक दूसरे से बात एका | पूछने लगे । जाना सत्य है, यह सुनकर सब ऐसे विकल हो गये, जैसे संध्या के ये समय कमल सकुचा गये हों। जहँ जहँ आवत असे बराती ॐ तहँ तहँ सिद्ध चला बहु भाँती * बिबिध भॉति मेवा पकवाना ॐ भोजन साजु न जाइ बखाना | आते समय जहाँ-तहाँ बराती टिके थे, वहाँ-वहाँ बहुत प्रकार की रसद सामग्री रवाना हुई। अनेकों प्रकार के मेवे, पकवान और भोजन का सामान जो को बखाना नहीं जा सकता। है भरि भरि वसहँ अपार कहारा ॐ पठये जनक अनेक सुरा राम तुरग लाख रथ सहस पचीसा की सकल सँवारे नख अरु सीसा, है अगणित बैल और कहारों पर लाद-लादकर भेजा गया तथा अनेक | १, सीधा, भोजन की सामग्री ।