पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३६७

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राम)+6-0*3-राम -राम -राम -राम-राम -एम -ए -राम -राम -एम । ३६४ अट नस: । हैं सादर सकल कुअरि समुझाई ॐ रानिन्ह बार . वार उर लाई । एम) बहुरि बहुरि भेंटहिं महतारी ॐ कहहिं विरंचि रचीं कत नारी है आदर के साथ सब पुत्रियों को समझाकर रानियों ने बार-बार उन्हें हृदय । से लगाया। मातायें फिर-फिर भेटती और कहती हैं कि ब्रह्मा ने स्त्री-जाति को ॐ क्यों रचा है। ए । तेहि अवसर भाइन्ह सहित रामु भानु कुल केतु।। - चले जनक मन्दिर मुदित विदा करावन हेतु।३३४। | उसी समय सूर्यवंश के पताका-स्वरूप रामचन्द्रजी भाइर्यो-सहित प्रसन्न राम) होकर विदा कराने के लिए जनकजी के महल को चले। वारिउ भाइ सुभायँ सुहाये ॐ नगर नारि नर देखन धाये हैं रामू कोउ कह चुलन चहत हहिं राजू ॐ कीन्ह विदेह विदा कर साजू रामू चारों भाई स्वभाव ही से सुन्दर हैं। नगर के स्त्री-पुरुष उन्हें देखने को * दौड़े। कोई कहता है—आज ये जाना चाहते हैं, विदेह ने विदा की तैयारी है। * करा दी है। लेहु नयन भरि रूप निहारी ॐ श्रिय पाहुने भूप सुत चारी होम) को जानइ केहिं सुकृत सयानी ) नयन अतिथि कीन्हे बिधि आनी । आँख भरकर इनका रूप देख लो, राजा के चारों पुत्र प्यारे मेहमान हैं । हे कैं रामा सयानी ! कौन जानता है, किस पुण्य से ब्रह्मा ने इन्हें यहाँ लाकर हमारे नेत्रों राम को अतिथि किया है ? रामो मरनसीलु जिमि पाव पियूषा ॐ सुर तरु लहइ जनम कर भूखा हो पाव नारकी हरिपदु जैसे ॐ इन्ह कर दरसनु हम कहें तैसे मरने वाला प्राणी जिस तरह अमृत पा जाय और जन्म का भूखा कल्पवृक्ष । पा जाय और जैसे नरक में रहने वाला भगवान् के परम पद को प्राप्त हो जाय, वैसे ही हमको इनके दर्शन हैं। . निरखि राम सोभा उर धरहू ॐ निज मन फनि' मूरति मनि करहूं। । एहि विधि सवहि नयन फल देता ॐ गये कुँअर सव राज निकेता रामचन्द्रजी की शोभा को निरखकर हृदय में धर लो। अपने मनरूपी साँप ) १. साँप ।