पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३७१

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ॐ ३६८ ८ f८ छन । के समुझावत सव सचिव सयाने ॐ कीन्ह बिचार अनवसर जाने । राने वारहि वार सुंता उर लाईं ॐ सजि सुन्दर पालकी मँगाई एमा सब बुद्धिमान् मन्त्री उन्हें समझाते हैं। तब राजा ने विचार किया कि विषाद करने का यह अवसर नहीं है। बारम्बार पुत्रियों को हृदय से लगाकर उन्होंने सुन्दर सजी हुई पालकियाँ मंगवाईं। ए । प्रेम बिबस परिवार सब जानि सुलगन नरेस। यम 1994 कुअरि चढ़ाई पालकिन्ह सुमिरे सिद्धि गनेस॥३३८ । सारा परिवार प्रेम में बेसुध है। राजा ने अच्छी साइत जानकरः सिद्धि- ॐ सहित गणेशजी का स्मरण करके कन्याओं को पालकियों पर चढ़ाया। | बहु बिधि भूप सुता समझाईं ॐ नारि धरम कुल रीति सिखाई दासी दास दिये बहुतेरे सुचि सेवक जे प्रिय सिय केरे राम राजा ने पुत्रियों को बहुत तरह से समझाया और उन्हें स्त्री-धर्म और कुल की रीति सिखाई। बहुत से दास और दासियाँ दीं, जो सीताजी के प्रिय और य) विश्वासपात्र सेवक थे। ॐ सीय चलत व्याकुल पुरवासी ® होहिं सगुन सुभ मङ्गल रासी भूसुर सचिव समेत समाजा ॐ संग चले पहुँचावन राजा | सीता के चलते समय नगर-निवासी व्याकुल हो गये। मङ्गल की राशि | शुभ शकुन हो रहे हैं। ब्राह्मण और मन्त्रिमण्डल सहित राजा जनकजी उन्हें पहुँचाने के लिये साथ चले ।। समय बिलोकि बाजने बाजे ® रथ गज बाजि बरातिन्ह साजे दसरथ विप्र वोलि सब लीन्हे ॐ दान मान परिपूरन कीन्हे समय देखकर बाजे बजने लगे । बरातियों ने रथ, हाथी और घोड़े सजाये । राम) दुशरथजी ने सब ब्राह्मणों को बुलवा लिया और उन्हें दान और सम्मान से राम्रो | परिपूर्ण कर दिया। ए चरन सरोज धूरि धरि सीसा ॐ मुदित महीपति पाइ असीसा * सुमिरि गजाननु कीन्ह पयाना ॐ मंगल मूल सगुन भये नाना ) ब्राह्मणों के चरण-कमलों की धूलि सिर पर रखकर और आशीर्वाद पाकर के