पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३७३

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३७० चामिल ॐ - कोसलपति समधी सजन सनमाने सब भाँति । राम मिलनि परसपर बिनय अति प्रीति ने हृदयसमाति॥ अयोध्यानाथ दशरथजी ने अपने प्रियजन समधी को सब तरह से सम्मान किया। उनकी आपस में मिलने की नम्रता और अंत्यन्त प्रीति हृदय में समाती ॐ नहीं थी। मुनि मंडलिहि जनक सिरु नावा ॐ सिरवादु सर्बाहि सन पावा म) सादर . पुनि भेटे जामाता , रूप सील गुन निधि सब भ्राता ॐ जनकजी ने मुनि-मण्डली को सिर नवाया और सभी से आशीर्वाद पाया। रामो फिर आदर के साथ वे सब दामादों से मिले। सभी भाई रूप, शील और गुणों ॐ के निधान थे। राम जोरि पङ्करुह पानि सुहाये बोले बचन प्रेम जनु जाये। । राम करउँ केहि भाँति प्रसंसा की मुनि महेस मन मानस हंसा हूँ राम सुन्दर कमल के समान हाथों को जोड़कर वे ऐसे वचन बोले, जो सानो । प्रेम से ही जन्मे हों । हे राम ! मैं आपकी प्रशंसा किस प्रकार से करू ? आप है राम मुनियों और शिवजी के मनरूपी मानसरोवर के हंस हैं। ..., करहिं जोग जोगी जेहि लागी ॐ कोह मोह ममता मद त्यागी व्यापक ब्रह्म अलखु अबिनासी ॐ चिदानन्दु निरगुन गुन रासी * , योगी लोग जिनके लिये क्रोध, मोह, ममता और मद त्यागकर योग साघन करते हैं, जो सब में व्यापक, ब्रह्म, अव्यक्त, नाश-रहित, चिदानन्द, निर्गुण और गुणों की राशि हैं। । मर्ने समेत जेहि जान न बानी ॐ तरकि न सकहिं सकल अनुमानी हो) महिमा निगम नेति कहि कहई है जो तिहुँ काल एकरस अहई। के मन-सहित वाणी जिनको नहीं जानती और जिनकी तर्कना नहीं कर रोमो सकते, केवल अनुमान ही कर सकते हैं, जिनकी महिमा को वेदनेति' ( इतना रामो ॐ ही नहीं ) कहकर बतलाते हैं, जो तीन कालों में एकरस रहते हैं, राम्रो नयन विषयमो कहँ भयउ सो समस्त सुखमूल। * = सवइ सुलभु जग जीव कहँ भये ईसु अनुकूल॥३४१॥ ॐ १. पैदा किचे, जन्माये । २. है, रहता है।