पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३८०

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  1. . छाला .

३७७ । ॐ सुखी हो गये । वे मणियाँ और वस्त्र निछावर कर रहे हैं। उनकी आँखों में जल एम) भरा है और शरीर पुलकित हैं। आरति करहिं मुदित पुर नारी ॐ हरपहिं निरखि कुअर वर चारी | सिविका' सुभग ओहार उघारी ॐ देखि दुलहितिन्ह होहिं सुखारी। नगर की स्त्रियाँ आनंदित होकर आरती कर रही हैं और चारों श्रेष्ठ कुमारों को देखकर हर्षित हो रही हैं। पालकियों के सुन्दर परदे हटा-हटाकर वे दुलहिन । को देखकर सुखी होती हैं। एहि बिधि सबही देत सुख आये राजदुआर । मुदित मातु परिछन करहिं बधुन्ह समेत कुसार ३४८ पाने * इस तरह सबको सुख देते हुए राजद्वार पर आये। मातायें प्रसन्न होकर राजकुमारों-सहित बहुओं को परछन कर रही हैं। म) करहिं आरती वारहिं वारा ॐ प्रेम प्रमोदु कहइ को पारा शाम ॐ भूषन मनि पट नाना जाती ॐ करहिं निछावरि अगनित भाँती वे बार-बार आरती कर रही हैं। उस प्रेम और आनन्द को कहकर कौन पार पो सकता है ? गहने, मणि, अनेक तरह के वस्त्र और असंख्य प्रकार की रानी चीजें वे निछावर कर रही हैं। बधुन्ह समेत देखि सुत चारी ॐ परमानन्द मगन महतारी पुनि पुनि सीय राम छवि देखी ॐ मुदित सफल जग जीवन लेखी | पतोहुओं-सहित चारों पुत्रों को देखकर मातायें परम आनन्द में डूब गईं। बार-बार सीता और राम की छवि देखकर वे संसार में अपने जीवन को सफल मानकर आनंदित हो रही हैं। सखीं सीय मुख पुनि पुनि चाही ॐ गान करहिं निज सुकृत सराही राम वरष सुमन छलहिं छन देवा ॐ नाचाहिं गावहिं लावहिं सेवा । सखियाँ बार-बार सीता का मुख देखकर अपने-अपने पुण्यों की सराहना ' करती हुई गान कर रही हैं। देवता क्षण-क्षण में फूल बरसाते, नाचते और गाते है हैं और अपनी-अपनी सेवायें समर्पण कर रहे हैं। १. पालकी । २. पालकी का परदा ।