पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३८४

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उनको मेन सदा सँभालते रहते थे। फिर राजा ने गुरु वशिष्ठजी के चरणम) कमलों की पूजा और विनती की । हृदय में उनके लिये कम प्रीति नहीं थी। ॐ बधुन्ह समेत कुमार सब रालिन्ह सहित महीसु ।। पुनि पुनि बन्दतगुरुचरन देत असीस मुलीसु ॥३५॥ । बहुओं-सहित सब राजकुमार और रानिय-समेत राजा बार-बार गुरु के ॐ चरणों की वन्दना करते हैं और मुनिराज आशीर्वाद देते हैं। राम विनय कीन्हि उर अति अनुरागे ॐ सुत सम्पदा राखि सब आगे ॐ नेगु माँगि मुनिनायक लीन्हा ॐ आसिरबादु बहुत विधि दीन्हा । । अत्यन्त प्रेम-पूर्ण.हृदय से पुत्रों और सारी सम्पत्ति को सामने रखकर राजा ने उन्हें ( स्वीकार कर लेने के लिये ) विनती की। परंतु मुनिराज ने ( पुरोहित । के नाते ) अपना नेग माँग लिया और बहुत तरह से उन्हें आशीर्वाद दिया। ॐ उर धरि रामहिं सीय समेत हरषि कीन्ह गुर गवन निकेता है। बित्र बधू सब सूप वोलाई को चैल' चारु भूषन पहिराई। हृदय में सीता-सहित रामचन्द्रजी को रखकर गुरु प्रसन्नता से अपने स्थान ॐ को गये । राजा ने सब ब्राह्मणियों को बुलवाया और उन्हें सुन्दर वस्त्र और , आभूषण पहनाये।। ॐ बहुरि बोलाइ सुसिनि लीन्हीं की रुचि बिचारि पहिरावनि दीन्हीं राम नेगी नेग जोग सब लेहीं ॐ रुचि अनुरूप भूपमनि देहीं रामे फिर उन्होंने सुहागिनी स्त्रियों ( नगर भर की सौभाग्यवती बहनों, बेटिर्यो, राम भानजी आदि ) को बुलवा लिया। उनकी रुचि समझकर उन्हें पहिरावनी दी। राम) ॐ नेगी लोग सब अपना-अपना नेग-जोग लेते और राजाओं के मणि (दशरथजी) एम) उनकी इच्छा के अनुसार देते हैं। ॐ प्रिय पाहुने पूज्य जे जाने ॐ भूपति भली भाँति सनमाने । * देव देखि रघुबीर बिबाहू के बरषि प्रसून प्रसंसि उछाहू जिन महमानों को प्रिय और पूजनीय जाना, उनका राजा ने अच्छी तरह सम्मान किया। देवगण रघुनाथजी का विवाह देखकर फूल बरसाकर, उत्सव की प्रशंसा करके, १. वस्त्र !