पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/४०९

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ॐ १०८ औ छ न के समय पलटता है, तो मित्र भी शत्रु हो जाते हैं। हो भानु कमल कुल पोपनि हारा विनु जर' जारि करइ सोइ छारा से) ॐ जर तुम्हारि चह सवति उखारी के रूधहु करि उपाउ वर वारी' के | देखिये, सूर्य कमल के कुल का पालन करने वाला है। पर बिना पानी के एम्। वही सूर्य उन्हीं कमलों को जलाकर भस्म कर देता है। ( वैसे ही ) तुम्हारी जड़ हूँ तुम्हारी सौत ( कौशल्या ) उखाड़ना चाहती है। अतः उपायरूपी मज़बूत वाड़ छै लगाकर उसे रूध दो। एम् - तुम्हहिं न सोचु सोहाग बह निज वर जानहु राउ।

  • मन मलीन हूँ मीठपु राउर सरल सुभाउ॥१७॥ ) | तुम्हें अपने सुहाग के बल पर कुछ सोच नहीं है । राजा को अपने वश में जानती हो। पर राजा मन के मैले और मुंह के मीठे हैं और तुम्हारा सीधा राम स्वभाव है। चतुर गॅभीर राम महतारीं ॐ वीचु पाइ निज बात सँवारी एम

पठये भरतु भूप । ननिअउरें ॐ राम मातु मत जानव रउरें । एका राम की माता कौशल्या वड़ी चतुर और गम्भीर हैं। उन्होंने मौका पाकरे से अपनी बात बना ली। राजा ने जो भरत को ननिहाल भेज दिया है, उसमें राम * या की माता ही की सलाह समझना। * सेवहिं सकल सवति मोहि नी छ गरवित भरत मातु वल पी के सालु तुम्हार कौसिलहि माई ॐ कपट चतुर. नहिं होइ जनाई , कौशल्या समझती हैं कि सब सौतें तो मेरी अच्छी तरह टहल करती हैं, * एक भरत की माँ पति के बल पर घमंड में रहती है। हे माई ! कौशल्या को * तुम्हीं खटक रही हो। वे चतुर हैं, उनका कपट जानने में नहीं आता। ॐ राजहिं तुम्ह पर प्रेम विसेषी ॐ सवति सुभाड सकइ नहिं देखी हूँ राम रचि प्रपंचु भूपहि अपनाई ॐ राम तिलक हित लगन धराई । राजा का तुम पर विशेष प्रेम है। सौत का स्वभाव है, वे इसे देख नहीं है एम) सकतीं । इसलिये कौशल्या ने प्रपंच (जाल ) रचकर, राजा को अपने वश में है करके, रास के राजतिलक का लग्न निश्चय करा लिया । १. जड़ । २. घाड़, घेरा । ३. मौका। ४. काँडा, खटकने वाली वस्तु । ५. लिये, वास्ते ।