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में अलग-अलग हैं, पर वास्तव में एक ही हैं। वैसे ही सीताराम हैं। मैं उनके चरणों को प्रणाम करता हूँ, उनको दुर्बल ही अत्यन्त प्यारे हैं।
ॐ बंदउँ राम नाम रघुबर को ॐ हेतु कृसानु' भालु हिमकर को ॥ विधि हरि हर मय बेद प्रान सओ ॐ अगुन अनूपम गुन निधान सो ॥
मैं रामचन्द्रजी के नाम ‘राम की वन्दना करता हूँ, जो अग्नि, सूर्य और ॐ चन्द्रमा के हेतु ( कारण ) हैं। जो कृशानु (र ) भानु (आ) और हिमकर ( म ) का बीज है, वह राम' नाम ब्रह्मा, विष्णु और शिव रूप है। अर्थात् इन तीनों में एक रूप होकर रम रहा है। वह वेदों का प्राण है और निर्गुण, उपमा-रहित और गुणों का भण्डार है। [ यथासंख्य अलंकार ]
ॐ महामंत्र सोइ जपत महेसू ॐ कासी सुकुति हेतु उपदेसू ॥ महिमा जासु जान गनराऊ । प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ ॥
वही रामनामरूपी महामन्त्र जिसको महादेवजी जपा करते हैं और जिसका उपदेश काशी में मुक्ति का कारण है, तथा जिसकी महिमा को गणेशजी जानते हैं। राम नाम ही के प्रभाव से वे सबसे पहले पूजे जाते हैं।
जान आदि कवि नाम प्रतापू ॐ भयेउ सुद्ध करि उलटा जापू ॥ सहसनाम सम सुनि सिव बानी । जपि जेई पिय संग भवानी ॥
आदिकवि वाल्मीकि मुनि राम नाम के प्रताप को जानते हैं । जो उलटा अर्थात् “मरा, मरा” जप करके ही पवित्र हो गये। जब पार्वतीजी ने शिवजी के मुँह से सुना कि रामनाम का एक बार का उच्चारण सहस्रनाम के बराबर है, तब इस नाम को जपकर पति के साथ उन्होंने भोजन किया । राम
हरषे हेतु हेरि हर ही को ॐ किय भूषन तिय भूषन ती को ॐ नाम प्रभाउ जान सिव नीको ॐ कालकूट फल दीन्ह अमी को ॥
पार्वतीजी के हृदय की ऐसी प्रीति देखकर शिवजी हर्षित हो गये और पार्वतीजी को, जो स्त्रियों में भूषण हैं, अपना भूषण ( र्धाङ्ग-निवासिनी ) बना लिया। शिवजी नाम के प्रभाव को अच्छी तरह जानते हैं। नाम के प्रभाव से ही उनको कालकूट विष ने अमृत का फल दिया।
१. अग्नि ! २, चन्द्रमा । ३. प्रीति । ४. स्त्री ।