पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/५

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रामचरित मानस के रूप में चित्रित किया ।यही चित्र रामचरितमानसहै। 'रामचरितमानस' हैं दीनता की एक अमूल्य भेंट है, जो गरीबों की ओर से एक अत्यन्त निर्धन । व्यक्ति द्वारा संसार को मिली है। यह ‘रामचरितमानस' गृहस्थों का अमूल्य 3 घन है । इसे किसी मूल्य पर, बदले में बड़ेबड़े राज्य लेकर भी, वे देना । स्वीकार नहीं करेंगे । यही इस युग में हिन्दुओं का वेद है । एक गरीब ने जो कर दिखाया, बह राम से नहीं हो सका था। न ले अब राम , न सीता, न लक्ष्मणन विभीषण और न हनुमान’ पर , तुलसीदास अब भी हैं 1 ‘रामचरितमानस' उनका प्रत्यक्ष रूप है, जो अमर ) है, अजर , अमिट है और अचल है । तुलसीदास न होते तो शायद उनके 60 राम भी न होते और तब हम भी न होते । परिवर्तनशील काल हमें खा चुका । होता—यद्यपि यह भी राम ही की महिमा है। माघ नाम के एक दानी कवि ने बदान्यता के असह्य भार को न सहन एसे करके स्वयं पराजित होकरआत्मघात कर लिया था । कहा जाता है कि बह निर्धनता से प्रताड़ित होकर एक बार घन के लिए धारानरेश की राजधानी में पहुँचा। उसने अपनी स्त्री के हाथ राजा के पास यह श्लोक लिखकर भेजाः- से कुमुदवनमपश्री श्रीमदम्भजखण्डू स्यजति मुदमुल्क: ग्रीतिमाँचक्राक' उदयमहिमरश्मिति : शीतांशुरस्त हतविधिलसितानां दुत्रिपाको विचित्रः ॥ कुमुदबन की शोभा जाती रही, कमल शोभायमान हो गएउलूक हर्ष को त्याग रहा है, चक्रवाक प्रसन्न हो रहा हैइधर सूर्य उदय हो रहा है, उधर चन्द्र अस्त हो रहा है । हा ! विधाता के कार्यों का परिणाम विचित्र है।, इस पद्य के भाव पर मुग्ष होकर धारानरेश ने कविपत्नी को प्रधर के धनराशि देकर विदा किया। कविपत्नी धन लेकर पति के पास चली ।रास्ते - में याचकों के मुख से अपने पति की कीर्ति सुनकर उसने संत घन उन्हें दे डाला और वह खाली हाथ पति के पास पहुँची। माघ ने सब वृत्तान्त सुनकर कहातुमने बहुत अच्छा किया। पर से तुम्हारे दान का समाचार पाकर जो याचकों की भीड़ आ रही है, उसे अब क्या दिया जायगा १ द्वान-शक्ति की क्षीणता विल होकर माघ ने यह क्रूर आत्महत्या करली