पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/५१

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दायक है पर उसका वर्णन नहीं किया जा सकता । निर्गुण और सगुण, के बीच में नाम सुन्दर साक्षी है, फिर दोनों का यथार्थ ज्ञान कराने वाला चतुर ॐ दुभाषिया है। राम

राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार। राम)
तुलसी भीतर बाहिरेहुँ जौं चाहसि उँजियार ॥२१॥

तुलसीदासजी कहते हैं कि यदि तू घरके बाहर और भीतर दोनों ओर राम) उजाला चाहता है, तो द्वार की जीभ रूपी देहली पर रामनाम रूपी मणि का दीपक रखें।

नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी ॐ बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी ॥
ब्रह्मसुखहिं अनुभवहिं अनूपा ॐ अकथ अनामय नाम न रूपा ॥ 

ब्रह्मा के बनाये हुये इस प्रपञ्च ( दृश्यमान जगत ) से भलीभाँति उदासीन योगीजन जीभ से नाम को ही जपते हुये जागते हैं। वे अनुपम ब्रह्म-सुख को अनुभव करते हैं, जो अकथनीय, निर्मल, बिना नाम और रूप का है।

जाना चहहिं गूढगति जेऊ ॐ नाम जीहँ जपि जानहिं तेऊ ॐ 
साधक नाम जपहिं लय लाए ॐ होहिं सिद्ध अनिमादिक पाए ॥

जो आत्मा-परमात्मा के गूढ़ भेद को जानना चाहते हैं, वे भी नाम को जीभ से जपकर उसे जान लेते हैं। साधकजन लौ लगा कर नाम का जप करते हैं और अणिमा आदि आठों सिद्धियाँ पाकर सिद्ध हो जाते हैं। उम्)

जपहिं नाम जनु आरत भारी ॐ मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी ॐ 
राम भगत जग चारि प्रकारा ॐ सुकृती चारिउ अनघ उदारा ॥

अत्यन्त दुःखी भक्त नाम को जपते हैं, उनके बुरे संकट मिट जाते हैं और वे सुखी होते हैं। संसार में चार प्रकार के राम के भक्त हैं; अर्थात् जिज्ञासु-—ईश्वर एम् के जानने की इच्छा रखनेवाला; अर्थी-किसी प्रयोजन की सिद्धि के लिये ईश्वर का स्मरण करनेवाला; आर्त्त-किसी दुःख में फंसकर ईश्वर को याद करनेवाला; ज्ञानी-—ईश्वर को जानकर भजने वाला। चारों ही पुण्यात्मा, पापहीन और उदार हैं।

१. जीभ । २. चौखट । ३. प्रकाश । ४. वे भी ! ५. भक्त ।