पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/५४

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दंडक बन प्रभु कीन्ह सोहावन ॐ जन मन अमित' नाम किय पावन ॥ राम 
निसिचर निकर' दले रघुनंदन ॐ नाम सकल कलि कलुष निकंदन ॥

प्रभु राम ने दण्डक-बन को सुहाना बना दिया; किन्तु नाम ने असंख्य राम भक्तों के मन को पवित्र कर दिया | राम ने राक्षसों के समूह को मारा; परन्तु राम) नाम तो कलियुग के सारे पापों का नाश करने वाला है।

सबरी गीध सुसेवकनि सुगति दीन्हि रघुनाथ ।। राम 
नाम उधारे अमित खल बेद बिदित गुन गाथ॥२४॥ राम 

राम ने शबरी, गीध आदि उत्तम सेवकों (भक्तों) को मुक्ति दी; परन्तुनाम ने अनगिनत दुष्टों का उद्धार किया । नाम के गुणों की कथा वेदों में विदित है।

राम सुकंठ विभीषन दोऊ ॐ राखे सरन जान सबु कोऊ ॥
नाम गरीब अनेक नेवाजे । लोक वेद वर विरद विराजे ॥

राम ने सुग्रीव और विभीषण दो को ही अपनी शरण में रखा, यह सब कोई जानते हैं। पर नाम ने अनेक दीनों पर कृपा की है। नाम का यह विरद लोक और बेद दोनों में विराजमान है।

राम भालु कपि कटकु वटोरा । सेतु हेतु स्रमु कीन्ह न थोरा ॥
नाम लेत भवसिंधु सुखाहीं ॐ करहु विचार सुजन मन माहीं ॥

राम ने भालू और बन्दरों की सेना वटोरी और समुद्र पर पुल बाँधने के लिये थोड़ा परिश्रम नहीं किया; पर नाम लेते ही संसाररूपी समुद्र सूख जाता है । हे सज्जनो ! मन में विचार करें ( कि दोनों में कौन बड़ा है।)

ॐ राम सकुल रन रावनु मारा ॐ सीय सहित निज पुर पगु धारा ॥
राजा रामु अवध रजधानी ॐ गावत गुन सुर मुनि वर वानी ॥

राम ने कुटुम्ब-सहित रावण को युद्ध में मारा और सीता-सहित वे अपने राम नगर अयोध्या को लौटे। राम राजा हैं, उनकी राजधानी अयोध्या है; जिसके ॐ गुण देवता और मुनि सुन्दर वाणी से गाते हैं।

राम सेवक सुमिरत नाम सप्रीती ॐ बिनु स्रम प्रबल मोह दलु जीती ॥
फिरत सनेह मगन सुख अपने । नाम प्रसाद सोच नहिं सपने ॥

१. असंख्य । २. समूह । ३. नाश करने वाला । ४. सुग्रीव ।।