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५२ परन्तु भक्त प्रेमपूर्वक नाम के स्मरणमात्र से अज्ञान की प्रबल सेना को बिना परिश्रम के जीत लेता है और प्रेम में मग्न होकर आत्मानन्द में विचरताहै। नाम के प्रसाद से उसे सपने में भी कोई चिन्ता नहीं रहती।
ब्रह्म राम तें नामु बड़ बरदायक बर दानि । रामचरित सत कोटि महुँ लिय महेस जियँ जानि॥२५॥
ब्रह्म और राम से नाम बड़ा है। यह वरदान देने वालों (देवताओं) को भी वर देने वाला है। सौ करोड़ या सौ प्रकार के रामचरित में से शिवजी ने इस ॐ राम” नाम को मन में साररूप जानकर ग्रहण किया है। राम
नाम प्रसाद संभु अविनासी ॐ साजु अमंगल मंगल रासी ॥ सुक सनकादि सिद्ध मुनि जोगी ॐ नाम प्रसाद ब्रह्म-सुख भोगी ॥
नाम ही के प्रसाद से शिवजी अविनाशी हैं और अमंगल (बुरा) वेष होने पर भी वे मंगल की राशि (मंगलमय) हैं। शुक और सनक आदि सिद्ध, मुनि, योगीजन नाम ही के प्रसाद से ब्रह्मानन्द को भोगते हैं।
नारद जानेउ नाम प्रतापू ॐ जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू ॥ नाम जपत प्रभु कीन्ह प्रसादू । भगति सिरोमनि भे प्रहलादू ॥ राम
नाम के प्रताप को नारद जी ने जाना है। हरि सारे संसार को प्यारे हैं। ॐ और हरि और हर दोनों को नारद मुनि प्यारे हैं। नाम के जपने से भगवान के राम प्रह्लाद पर प्रसन्न हुये और वे भक्तों के शिरोमणि हो गये।
ध्रुव सगलानि जपेउ हरि नाऊँ ॐ पायउ अचल अनूपम ठाऊँ ॥ सुमिरि पवनसुत पावन नामू । अपने बस करि राखे रामू ॥ ॐ
ध्रुवजी ने (विमाता के वचनों से दुखी होने पर) ग्लानिपूर्वक नाम को जपा और अचल (स्थिर) तथा अनुपम स्थान पाया। हनुमान जी ने पवित्र नाम को जपकर राम को अपने वश में कर रखा है।
अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ ॐ भये मुकुत हरि नाम प्रभाऊ ॥ राम) कहउँ कहाँ लगि नाम बड़ाई ॐ रामु न सकहिं नाम गुन गाई ॥राम
नीच अजामिल, गज और गणिका भी भगवान् के नाम के प्रभाव से मुक्त
१. नीच ।।