पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/६५

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जिस भाँति पार्वती ने (शिवजी से) प्रश्न किया और जिस भाँति शिवजी ने विस्तार के साथ उसका उत्तर दिया, वह सब कारण मैं विचित्र कथा की रचना करके और गाकर कहूँगा। राम

जेहि यह कथा सुनी नहिं होई ॐ जनि अचरज करइ सुनि सोई ॥ राम

कथा अलौकिक सुनहिं जे ग्यानी ॐ नहिं अचरजु करहिं अस जानी ॥

जिसने यह कथा पहले कभी न सुनी हो, वह इसे सुनकर आश्चर्य न राम करे । जो ज्ञानी इस विचित्र कथा को सुनते हैं, वे यह जानकर आश्चर्य नहीं करते कि---

रामकथा कै मिति जग नाहीं ॐ असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं ॥

नाना भॉति राम अवतारा ॐ रामायन सत कोटि अपारा ॥

संसार में रामकथा की सीमा नहीं है। उनके मन में ऐसा विश्वास रहता ॐ है। रामचन्द्रजी के अवतार नाना प्रकार के हुए हैं और सौ करोड़ तथा अपार राम रामायण हैं।

कलपभेद हरिचरित सोहाए । भाँति अनेक मुनीसन्ह गाए ॥रामो

करिअ न संसय अस उर आनी ॐ सुनिअ कथा सादर. रति मानी ॥

मुनीश्वरों ने रामचन्द्रजी का सुन्दर चरित कल्प-भेद के अनुसार अनेकों राम प्रकार से गाया है। हृदय में ऐसा विचार कर सन्देह न कीजिये और इस कथा को आदरपूर्वक प्रेम से सुनिये ।

राम अनंत अनंत गुन अमित कथा विस्तार।

सुनि अचरजुन मानिहहिं जिन्हके बिमल बिचार ॥ ३३ राम

रामचन्द्रजी अनन्त हैं, उनके गुण भी अनन्त हैं और उनके गुणों की राम कथा का विस्तार भी अपार है। अतएव जिनके विचार शुद्ध हैं, वे इस कथा को सुनकर आश्चर्य नहीं मानेंगे।

एहि बिधि सब संसय करि दूरी ॐ सिर धरि गुर पद पंकज धूरी ॐ

पुनि सबहीं बिनवउँ कर जोरी ॐ करत कथा जेहि लाग न खोरी ॥

इस भाँति सब सन्देहों को दूर करके और गुरुजी महाराज के चरण कमलों की धूलि को सिर पर धारण करके मैं फिर हाथ जोड़कर सबकी विनती करता हूँ कि जिसमें कथा की रचना में कोई दोष न छु जाय।