पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/६७

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  • . यह 'शोभायमान अयोध्यापुरी रामचन्द्रजी के धाम ( बैकुण्ठ ) की देने के * वाली, समस्त लोकों में प्रसिद्ध और अति पवित्र है । जगत् में अंडज, स्वेदज, ॐ उद्भिज और जरायुज चार खानि के जो अनन्त जीव हैं, उनमें से जो अयोध्या

में शरीर-त्याग करते हैं वे फिर संसार में नहीं आते । । ॐ सब विधि पुरी मनोहर जानी 3 सकल सिद्धिप्रद मंगलखानी राम) विमल कथा कर कीन्ह अरंभा को सुनत लसाहिं काम पद दंभा | इस अयोध्यापुरी को सब भाँति से मनोहर, सब सिद्धियों की देने वाली ए और कल्याण की खान समझकरे इस निर्मल कथा का मैंने आरम्भ किया है, । जिसके सुनने से काम, मद और दम्भ दूर हो जाते हैं। । रामचरितमानस एहि नामा ॐ सुनत स्रवनः पाइअ बिस्रामा । मन करि बिषय अनल बन जरई ॐ होइ सुखी जौं एहि सर परई में * . इसका नाम रामचरितमानस है, कानों से जिसके सुनने से शान्ति राम) मिलती है। मनरूपी हाथी विषयरूपी दावानल में जल रहा है। यदि वह इस राम रामचरितमानसरूपी सरोवर में आ पड़े, तो सुखी हो जाय । राम रामचरितमानस मुनि भावन ॐ बिरछेउ संभु सुहावन पावन । त्रिविध दोष दुख दारिद दावन' ॐ कुलि' कुचालि कलि कलुष नसावन मुनियों को प्रिय, पवित्र और सुहावने इसे रामचरितमानस को शिवजी * ने रचा है। यह तीनों प्रकार के दोष, दुःखों और दरिद्रता को तथा सब बुराइयों * और कलियुगं के पापों को नष्ट करने वाला है। .. हो) रचि महेस निज मानस राखा ॐ पाइ सुसमउ सिवा सन भाखा में तातें रामचरितमानस बर ॐ. धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर है राम कहउँ कथा सोइ सुखद सुहाई ॐ सादर सुनहु सुजन मन लाई में

इसको रचकर शिवजी ने अपने मन में रखा था और सुअवसर पाकर राम उन्होंने पार्वती से कहा। इसी से शिवजी ने खूब सोच-समझकर और प्रसन्न । । होकर इसका सुन्दर नाम “रामचरितमानस” रक्खा । उसी सुखदायक और राम् सुन्दर राम-कथा को. मैं कहता हूँ. हे सज्जनो ! आदरपूर्वक मन लगाकर इसे । । सुनिये ।। # १. नष्ट करने वाला। २. कुल, समस्त । ३. पार्वती।

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