पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/९१

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| ८८ अति मना सती हृदय अनुमान किय सब जानेउ सर्बग्य। एम् कीन्ह कपट मैं संभु सन नारि सहज जड़ अग्या५७(१) । सती ने अपने हृदय में अनुमान किया कि सर्वज्ञ शिवजी सब जान गये। मैंने शिवजी से छल किया। स्त्री स्वभाव ही से मूर्ख और नासमझ होती है। के राम gs जलु फ्य' सरिस बिकाइ देखहु प्रीति कि रीति भलि। पुणे 3 विलग होइरस जाइ कपट खटाई परत पुनि ॥५॥२) है। | .. प्रीति की सुन्दर रीति देखिये कि ( दूध के साथ मिलकर ) पानी दूध के कैं समान-भाव बिकता है; पर कपटरूपी खटाई पड़ते ही दूध, पान दोनों अलग हो जाते हैं और स्वाद जाता रहता है। [ दृष्टान्त अलंकार ] । हृदय सोच समुझत निज करनी ॐ चिंता अमित जाइ नहिं बरनी | कृपासिंधु सिव परम अगाधा ॐ प्रगट न कहेउ मोर अपराधा । अपनी करतूत को याद करके सती के मन में इतना सोच और इतनी अधिक चिन्ता हुई, जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता । वे समझ गई कि शिवजी महाराज बड़े ही गम्भीर और कृपा के सागर हैं, इससे मेरी अपराध उन्होंने प्रगट रूप में नहीं कहा। हैं संकर रुख अवलोकि भवानी ॐ प्रभु मोहि तजेउ हृदयँ अकुलानी हूँ निज अघसमुझि न कछु कहि जाई तपइ अवाँ इव उर अधिकाई | सती ने शंकरजी का रुख देखकर समझ लिया कि स्वामी ने मुझे छोड़ दिया। वे मन में बहुत व्याकुल हुईं। अपना अपराध समझकर उनसे कुछ कहते ॐ नहीं बनता । कुम्हार के आवे के समान उनका हृदय बहुत जलने लगा। | ॐ सतिहि ससोच जानि वृषकेतू ॐ कही कथा सुंदर सुख हेतू' हैं राम बरनत पंथ विविध इतिहासा ॐ विस्वनाथ पहुँचे कैलासा | सती को चिन्तित जानकर शिवजी ने उनको सुख देने के लिये सुन्दर ' कथायें कहीं। इस प्रकार मार्ग में अनेक प्रकार के इतिहास कहते-कहते शिवजी ॐ कैलाश जा पहुँचे । १. दूध । २. पाप । ३. लिये।