पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/९४

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| बाल-एड ६१ ।। ॐ ॐ दच्छ लिये मुनि बोलि सब करने लगे बड़ जारी - नेवते सादर सझल सुर जे पावत अख ग ॥६०॥ । ... दक्ष ने सव मुनियों को बुला भेजा और वे बड़ा यज्ञ करने लगे। जो देवता यज्ञ में भाग पाते हैं, उन्होंने उन सवको आदर-सहित निमंत्रित किया। किन्नर नाग सिद्ध गंधर्वा ॐ वधुन्ह समेत बले सुर सर्वा ॐ विष्नु विरंचि महेसु विहाई ॐ चले सकल सुर जान वनाई ( दक्ष का निमंत्रण पाकर ) किन्नर, नाग, सिद्ध, गन्धर्व और सब देवता म) अपनी-अपनी स्त्रियों-सहित चले । विष्णु, ब्रह्मा और शिवजी को छोड़कर शेप ॐ सब देवता अपना-अपना विमान सजाकर चले । | एम सती बिलोके व्योम विमाना की जात चले सुंदर विधि नाना। सुर सुंदरी कहिं कल गाना ॐ सुनत स्रवन छूटहिं मुनि ध्याना | सती ने देखा कि आकाश में अनेक प्रकार के सुन्दर विमान चले जा रहे हैं। हैं। देवों की सुन्दरियाँ ( विमानों में बैठी हुई ) मधुर गीत गाती जाती हैं, जिन को सुनकर मुनियों का भी ध्यान छूट जाता है। एम) पूछेउ तब सिव कहेउ वखानी ॐ पिता जग्य सुनि कछु हरपानी । जौं महेस मोहि आयसु देहीं ॐ कछ दिन जाइ रहौं मिस एहीं * सती ने जब पूछा, तब शिवजी ने उनके जाने का कारण बताया। पिता * के यज्ञ की बात सुनकर सती को कुछ हर्ष हुआ । ( वे मन में कहने लगी कि ) यदि शिवजी मुझे जाने की आज्ञा दें, तो इसी बहाने से मैं कुछ दिन पिता के । घर जाकर रहूँ ।। * पति परित्याग हृदयँ दुखु भारी छ कह न निज अपराध विचारी एम) वोली सती मनोहर बानी छ भय संकोच प्रेम रस सानी पति द्वारा त्यागी जाने का उनके हृदय में बड़ा दुःख था; पर अपना अप। राध समझकर वे कुछ कहती न थीं। वे भय, संकोच और प्रेमरस से सनी हुई मनोहर वाणी बोलीं १. यज्ञ । २. आकाश।