पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१०५

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६२ राष्ट्रीयता और समाजवाद उसमे आगे वढनेकी इच्छा तो है परन्तु वह अपने-अापको उसके योग्य नही पाती । स्पष्ट शब्दोमे कहा जायगा कि वह आन्दोलनको अागे चलाने के लिए कोई हथियार नही खोज पाती । इस हथियार न खोज पानेका अर्थ वास्तवमे है उद्देश्य निश्चय न कर पाना । काग्रेसकी शक्ति है जनता; और जनता आज सोयी हुई नही वह सन्तुष्ट भी नहीं । जनता आज जितनी असन्तुष्ट पोर सचेत है, बेसी कभी नहीं थी। जनता अपनी समस्याम्रो- को लेकर व्याकुल है । यदि जनताकी इन समस्याग्रोको काग्रेस अपना लेती है तो वह जनताकी प्रतिनिधि रह सकेगी और जनताकी ये समस्याएँ उमका पियार बन जायेंगी और इनका हल उसका उद्देश्य वन जायगा, परन्तु यदि काग्रेम इन सब महत्त्वपूर्ण समस्याअोसे पल्ला खीचकर ही अपना अस्तित्व कायम रखना चाहेगी, तो बिना ईधनकी अागकी तरह वह जल्द ही बुझ जायगी। कानेराके भविप्य और अस्तित्वके वारेमे ये प्रश्न है जिनकी ओर हमारे नेताओका ध्यान जाना चाहिये और इस समय आवश्यकता है कि काग्नेस एक ऐसी योजना तैयार करे, जिसमे इन प्रश्नोका स्पष्टीकरण हो और जनता उसे रामझ सके ।' समझौता विरोधी सम्मेलन पाठकोको मालूम होगा कि श्री सुभाषचन्द्र बोस रामगढमे समझौता विरोधी सम्मेलन करने जा रहे है । वगिक कमेटीने अपने हालके प्रस्तावमे यह बात साफ कर दिया है कि यह युद्ध साम्राज्यशाही युद्ध है और भारतवर्ष पूर्ण स्वाधीनतासे कमकी कोई चीज स्वीकार नही कर सकता । वकिंग कमेटीके इस प्रस्तावमे स्पप्ट शब्दोमे यह भी कह दिया गया है कि डोमिनियन स्टेट्स साम्राज्यान्तर्गत स्वराज्य भारतवर्षको लागू नहीं होता, क्योकि यह पद एक प्राचीन सभ्य जातिके उपयुक्त नहीं है और इससे भारतवर्ष कई तरहते ब्रिटिग राजनीति और आर्थिक सगठनसे बँध जावेगा। उपर्युक्त प्रस्तावमे यह भी कहा गया है कि भारतवासियोको ही अपने भाग्यके निर्णय करनेका अधिकार है और वही स्वराज्य पंचायत ( Constituent Assembly )के द्वारा अपना विधान तैयार कर सकते है और ससारके दूसरे देशोके साथ जैसा चाहे वैसा सम्बन्ध स्थापित कर सकते है । साधारण रीत्या यह आशा की जाती थी। इस प्रस्तावके पास होनेके बाद सुभाषवावू समझौता विरोधी सम्मेलनकी निरर्थकता और अनावश्यकताको मान लेगे, किन्तु बात ऐसी नहीं हुई। वह अव भी यह कहनेसे बाज नही आते कि वकिंग कमेटी ब्रिटिश गवर्नमेण्टसे समझौता कर लेगी। समझमे नही आता कि वकिंग कमेटी क्या करे जिससे सुभाप वावूके सन्देहका निराकरण हो । किन्तु क्या वास्तवमे उनको अब भी शक है कि हमारे नेता अपने ही निर्णयके विरुद्ध आचरण करेगे अथवा केवल 'हाई कमाण्ड'के १. सघर्प ३ दिसम्बर, १९३६