पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१०६

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समझौता विरोधी सम्मेलन ९३ विरुद्ध अपना प्रचार करनेकी गरजसे ही यह बात कही जाती है। उनकी इस प्रकारकी भविष्यवाणी दो वार गलत साबित हो चुकी है । गत वर्ष त्रिपुरीके पहले उन्होने वकिंग कमेटीपर फिडरेशन (सघ-शासन) के प्रश्नपर ब्रिटिश गवर्नमेण्टसे साजिश करनेका दोषारोपण किया था। जब आरोपको प्रमाणित करनेके लिए उनको चुनौती दी गयी तव उन्होने यह कहा कि उनका मतलव यह नही था कि वह स्वयं इस वातपर विश्वास करते है। इसी तरह वह युद्ध छिडनेके वाद कहते रहे कि काग्रेसके लोग वजारते नहीं छोड़ेंगे और जोककी तरह अपनी कुर्सियोमे चिपके रहेगे। यह भविप्यवाणी भी सच न निकली। खेदकी बात है कि सुभापवावू ऐसे उच्चकोटिके नेता अकारण ऐसी बाते वार-बार करते है । इसके लिए कोई आधार उनके पास नही है । वकिंग कमेटीके हालके प्रस्तावके बाद तो इस मामलेमे तनिक भी सन्देह नही रह जाता । प्रस्तावके शब्द विलकुल साफ है । किसी किस्मकी गुजाइश वाकी नही रखी गयी है। फारवर्ड ब्लाकके एक बड़े हिमायती प्रोफेसर रगाका कहना है कि बकिंग कमेटीका हालका प्रस्ताव सुभापवाबूकी एक बहुत वड़ी जीत है । इसका अर्थ यह है कि सुभापवाबूके निरन्तर प्रचारके कारण ही वकिंग कमेटीको इस तरहकी स्पष्टवादिताके लिए बाध्य होना पड़ा है । यदि यह ठीक है तो क्यो उस प्रस्तावपर अविश्वास प्रकट कर इस बडी जीतको हारमे परिवर्तित करनेकी चेप्टा की जा रही है। समझौतेकी गुंजाइश नहीं मेरा यह वरावर विचार रहा है कि समझौतेके लिए आज कोई गुंजाइश नहीं है । हो सकता है कि हमारे नेता डोमिनियन स्टेट्ससे सन्तुष्ट हो जाते, पर अाजकी स्थितिमे मै यह माननेको तैयार नही हूँ कि वह इससे कमपर भी समझौता कर लेते । आज काग्रेसकी शक्ति बहुत बढ गयी है । मन्त्रिपद छोडनेसे एक वैधानिक संकट उपस्थित हो गया है । शासन-विधानको स्थगित कर ब्रिटिश गवर्नमेण्ट संसारको यह धोखा नही दे सकती कि भारतमे शान्ति विराजती है और यहाँके लोग उसके शासनसे सन्तुष्ट है । फिर युद्धकी अवस्था है। ऐसे समय तटस्थ राष्ट्रोकी सहानुभूति और नैतिक सहायताका भी बड़ा महत्त्व हुया करता है । तटस्थ राष्ट्र, जिनका स्वार्थ अटका नहीं है, किसी ऊँचे अादर्शके लिए ही किसी लडनेवाले राष्ट्रको अपनी नैतिक सहायता देनेपर तैयार हो सकते है। काग्रेसने अपने वक्तव्यद्वारा ससारके सम्मुख अपना दावा रखा है और ससारको बतानेकी चेष्टा की है कि यह युद्ध तभी नैतिक दृष्टिसे न्याययुक्त है जब ब्रिटिश गवर्नमेण्ट भारतवर्षकी स्वाधीनताको स्वीकार करे ।' 1. The Congress must press the National Demand on the authorties and insist on bis immediate fulfilment.... Let not our leaders who are now deliberating at Wardha ask for a whit less than what is our inherent birthright. If they are called on to negotiate let them do so honourably (Forward Bloc 9 Sept. 1939)