पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१४ राष्ट्रीयता और समाजवाद इन विविध कारणोसे काग्रेसके नेता आज किसी वातसे सन्तुष्ट नहीं हो सकते, किन्तु अग्रेजोपर भी ऐसा दवाव नही पडा है कि वह कोई वडी बात करनेके लिए तैयार हो जावे । दुनियाको वह दिखलाना अवश्य चाहते है कि अपनी पोरसे वह हिन्दुस्तानको सन्तुष्ट करनेके लिए हर तरहसे तैयार है । किन्तु काग्रेस भारतके प्रल्प समुदायोके साथ न्याय करनेको तैयार नही है और इसी कारण कोई निर्णय नहीं हो पाता । यही वजह है कि समझौतेकी चेष्टा दो बार विफल हो चुकी है और अब तो एक प्रकारसे इसके लिए दरवाजा ही बन्द हो गया है। समझौतेकी वातचीतके लिए भी गाधीजीको दोप दिया गया है। कहा जाता है कि वह दिल्ली-तीर्थ-यावाके लिए वडे उत्सुक रहते है, पर यह बात कम लोग जानते होगे कि युद्धके प्रारम्भ होनेपर सुभाप वावूके पत्र ‘फारवर्ड ब्लाक' ने ६ सितम्वरके अकमे अपने अग्रलेखमे वर्किङ्ग कमेटीसे अनुरोध किया कि वह राष्ट्रीय मांगको अधिकारियोके सामने पेश करे और उसकी तात्कालिक पूर्ति पर जोर दे । इम लेखमे यह भी कहा गया था कि यदि हमारे नेता वातचीत करने के लिए ग्रामन्त्रित किये जाये तो वह निमन्त्रण स्वीकार करे, किन्तु सम्मानपूर्वक बातचीत करे ।' एक वर्ष पहले मालदामे जो जिला राजनीतिक काफ्रेस हुई थी उसमे भी इस प्रकारकी वात कही गयी थी। यह स्पष्ट है कि सुभाप वाबू वर्धाकी पाल इण्डिया काग्रेस कमेटीकी बैठकतक अधिकारियोसे वातचीत करनेके विरुद्ध नही थे। उनकी शिकायत इतनी ही थी कि वकिा कमेटीने अपना वक्तव्य देनेमे देर कर दिया; बल्कि यदि यह कहा जाय कि यही उनका प्लन था तो अनुचित न होगा । 'अल्टिमेटम' देनेकी योजनाके भी अन्तर्गत यही वात थी। फिर गाधीजीने वासरायके निमन्त्रणको स्वीकार कर कौन-सा अपराध किया ? सुभाप वावूकी नीतिका ही अनुसरण कर रहे थे । इसमे सन्देह नही कि काग्रेसमे ऐसे व्यक्ति है जो सघर्पको बचाना चाहते है और समझौतेके लिए उत्सुक है, उनकी चले तो वह छोटा-मोटा सौदा करके भी इस सकटका अन्त कर दे, किन्तु आजकी अवस्थामे ऐसे व्यक्तियोका समूह काग्रेसको बहुत प्रभावित नहीं कर सकता। वे काग्रेसमे समझौतेके प्रस्तावको लानेका भी साहस नही कर सकते । नेताअोपर वह वरावर दवाव डालते रहते है, पर वस्तुस्थिति उनकी बहुत सहायता नही करती, इसलिए उनकी चेष्टाएँ विफल होती है और उनकी इच्छायोकी पूत्ति नहीं हो पाती। पर अाजकी अवस्थामे ब्रिटिश गवर्नमेण्टपर न कोई ऐसा दवाव ही है कि वह कोई सार पदार्थ देना स्वीकार करे और न काग्रेस ही किसी छोटी चीजको लेना कवूल कर सकती है। वह तो अनुचित मार्ग मैं यह मानता हूँ कि ऐसे समूहकी काररवाइयोसे हमको सतर्क रहनेकी आवश्यकता है और उनका विरोध करना भी आवश्यक है, पर इसका यह तरीका नही है कि हम वर्किंग कमेटीको किसी साजिशका दोषी ठहरावे और उसके खिलाफ जिहाद बोल दे । वकिंग १ देखिये पृष्ठ सं० ६३ की टिप्पणी ।