पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/११७

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१०४ राष्ट्रीयता और समाजवाद में काग्रेसने जो नीति अपनायी थी कार्यसमितिके प्रस्तावसे उसका अन्त किया जा रहा है। यूरोपीय युद्धके प्रारम्भ होनेपर १४ सितम्बरको वर्धामे काग्रेस कार्यसमितिकी जो वैठक हुई उसमे ब्रिटिश सरकारसे पूछा गया था कि वह स्पष्ट करे कि उसके युद्ध-सम्वन्धी उद्देश्य क्या है । आगे चलकर जव अक्तूवर मासमे अखिल भारतीय काग्रेस कमेटीकी वैठक बुलायी गयी तो उसने निश्चय किया था उसमे ब्रिटिश सरकारसे उसके युद्ध सम्बन्धी उद्देश्योके अतिरिक्त सुलह-सम्वन्धी उद्देश्य भी पूछे गये थे और काग्रेसजनोंको प्रत्येक प्रकारकी परिस्थितिका सामना करनेके लिए तैयार रहनेको कहा गया था, जिसका स्पष्ट अर्थ यही था कि अगर ब्रिटिश सरकार अपने वक्तव्यो और कार्योसे स्पष्ट रूपसे यह नहीं सिद्ध कर देती कि यह युद्ध साम्राज्यवादी उद्देश्योके लिए नही लड़ा जा रहा है तो काग्रेस आजादीकी लड़ाई छेड़नेके लिए मजबूर होगी। इसके बाद 'स्वाधीनता दिवस' जिस ढंगसे मनाया गया, उससे काग्रेसजनोको यह बतलाया गया कि स्वतन्त्रता संग्रामके छेडनेकी तैयारी की जा रही है । काग्रेसके रामगढ-अधिवेशनमे साफ तौरपर इस वातका एलान कर दिया गया है कि वर्तमान यूरोपीय युद्ध साम्राज्यवादी युद्ध है, उसमें भाग लेना अपनी गुलामीकी जंजीरोको ही कसना होगा और फिर काग्रेस-कमेटियोको लडाईकी तैयारी करनेके लिए सत्याग्रह कमेटियोमे परिवर्तित हो जानेका आदेश दिया गया । रामगढ काग्रेसमे महात्मा गाधीके सेनापतित्व स्वीकार कर लेनेसे भी काग्रेस-जनोका यही विश्वास दृढ हुआ कि काग्रेस युद्धमे भाग नही लेने जा रही है, क्योकि महात्मा गाधी किसी हालतमे अधिकसे अधिक ब्रिटिश सरकारको देशकी नैतिक सहायता ही देनेको तैयार थे, इससे अधिक नही, अत. प्रस्तावके कुछ समर्थकोका यह कहना कि कार्य- समितिका निश्चय रामगढके निश्चयके प्रतिकूल नहीं है. वास्तविकताके अनुकूलन ही है । स्थितिमें परिवर्तन नहीं यह समझना भ्रम है कि आज परिस्थितिमे कोई ऐसा परिवर्तन हो गया है कि जिसकी कल्पना रामगढमें नहीं की जा सकती थी। अथवा जिसके कारण रामगढमे निर्धारित की हुई नीतको हमे वदलना पड़े। युद्धमे चाहे जो भी शक्ति जीते उपनिवेशोकी भलाई इसीमे है कि वे अपनी स्वाधीनताकी प्राप्तिके लिए प्रयत्न करे । अगर आजकी हालतमे इगलैण्ड जीत भी जाय तो यह समझना भूल होगी कि यह लोकतन्त्रकी विजय होगी। पूंजीवाद और प्रजातन्त्रका प्रचलित रूप लडाईके बाद भी वना नहीं रह सकता । अगर इंगलैण्डके पूंजीवादी शासक युद्धमें जीत जाय तो वे भी अपने देशमे एक नियन्त्रित पूंजी-. वादी व्यवस्था चलानेका प्रयत्न करेगे, भले ही वह उसे फैसिज्मका नाम न दे। जो हालत आज फासकी है उससे बहुत कुछ मिलती-जुलती हालत उस अवस्थामे इंगलैण्डमे भी हो जानेका डर है । अत. मनुष्यताको रक्षाके लिए इस युद्धमे हमारे सम्मिलित होनेका प्रश्न आजकी हालतमै नही उठता । हमारे सामने ब्रिटिश सरकारने भी कोई नया प्रस्ताव नहीं किया जिसके जवावमें हमें अपनी प्रोरसे कुछ कहना हो । रामगढ़के प्रस्तावमे हिन्दुस्तानकी आजादीका प्रश्न एक विस्तृत दायरेके अन्दर