पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/११९

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१०६ राष्ट्रीयता और समाजवाद गांधीजीने सत्याग्रहका यह नया अाधार बनाया है। फ्रांसके पतनसे भी किसी प्रकारका आन्दोलन शुरू करनेकी उनकी हिचकिचाहट बढ गयी है और वह इसीलिए सत्याग्रह शुरू करनेको तैयार हो गये है क्योकि उनके ख्यालसे गवर्नमेण्ट काग्रेसके कुचलनेके लिए तुली हुई है । उनके शब्दोमे यह सत्याग्रह यात्मरक्षाके लिए है । काग्रेसका संगठन इस प्रकारका नहीं है कि वह राज्य-शक्ति लेनेमें समर्थ हो सके । फिर सत्याग्रह आन्दोलनका साधारणतः समझौतेमे ही अन्त हो सकता है ? इसके द्वारा राज-सत्तापर दवाव काफी पड़ता है पर यह वर्तमान संगठनकी सहायतासे विदेशी सत्ताको नष्ट नहीं कर सकता। अहिंसाको सिद्धान्तरूपेण ग्रहण करनेसे उसकी बारीकियोमे जाना अनिवार्य हो जाता है जिनपर लम्बे-लम्वे शास्त्रार्थ चलते है और जैसा कि विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायोके पण्डित आपसमे किया करते है । इनसे वास्तविकतासे कम सम्बन्ध रहता है, अक्सर वालकी खाल निकाली जाती है जिसका समझना साधारण लोगोके लिए असम्भव हो जाता है । इस शास्त्रार्थमे पड़नेके कारण हमारे कई महीने खराव गये और जिस तरहसे हम अपने निर्णय रोज वदलते रहे उससे हमारी प्रतिष्ठामे कुछ कमी ही हुई है। वम्बईके प्रस्तावमें कहा गया है कि नागरिक स्वतन्त्रताकीरक्षाके लिए जिस मात्रा और रूपमे सत्याग्रहकी आवश्यकता होगी उतनीही मात्रा और परिमाणमे उसका व्यवहार किया जायगा । यह तो हमने वर्तमान नेतृत्वसे कभी पागा नहीं की थी कि वह राज्य- शक्ति लेनेके लिए सब उपयुक्त उपायोका अवलम्बन लेगे, पर हम यह अवश्य मानते थे कि पूर्ण स्वतन्त्रताके सवालको लेकर आन्दोलनका प्रारम्भ किया जायगा और इसी विश्वासमे हम समाजवादी पारम्भसे ही वर्किग कमेटीका साथ देते आये है । हमारा यह ख्याल ठीक निकला कि सत्याग्रह अनिवार्य है और दल कहते रहे कि नेता लड़ेगे नही, किन्तु हम कहते रहे कि परिस्थिति ऐसी है कि यदि वह लड़ना न भी चाहें तो उनको लड़नेपर मजबूर होना पड़ेगा। हमारा यह कथन ठीक निकला, किन्तु हमको यह पता नही था कि आन्दोलन का आधार इतना संकुचित कर दिया जायगा । मुसलिम लीगसे इतना डरनेकी क्या जरूरत है। उससे कई वार सुलहकी कोशिशे की गयी, पर सव मेहनत वेकार गयी । अव तो हमको यह समझकर काम करना है कि सम्प्रदायवादियोके विरोधका भी हमे मुकाबला करना है। अगर हम इसके लिए तैयार न हो तो उसके माने होगे कि हमने सदा के लिए अपने लक्ष्यके लिए लड़ना छोड दिया । वाहरी और भीतरी रुकावटोका समान रूपसे मुकाबला करना पड़ेगा, इसलिए मै नही समझता कि सवाल क्यो वदल दिया गया। इससे हमने अपनी लड़ाईको वहुत कमजोर कर दिया । उसमे शुरूसे ही वाँध-बाँध दिये और पावन्दियाँ लगा दी, जिससे वह जन-क्रान्तिमे विकसित न हो सके । इस प्रश्नसे साधारण लोगोको कोई विशेष दिलचस्पी नही है और उनमे यह योग्यता भी नही है कि वह भापण देकर या लेख लिखकर इस अधिकारको उपयोगमें लानेकी चेप्टा करे । तो क्या हम समझे कि देशकी अनपढ जनता इस आन्दोलनसे अलग रखी जायगी ? यदि ऐसा हुआ तो हमारा आन्दोलन प्रभावशाली कैसे हो सकेगा ?