पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१२५

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११२ राष्ट्रीयता और समाजवाद किन्तु यह व्यवसाय और व्यापारके लिए प्राण देते है । पिछले युद्धके समयकी इस प्रकारकी घटनासोका उल्लेख किया जा सकता है, जिससे स्पष्ट हो जायगा कि पूंजीवादियोके बड़े-बड़े गुट अपने मुनाफेके लिए शान्ति कायम नहीं होने देते। अनातोले फ्रासका यह कहना बहुत ठीक है कि इनका आराध्य देव, पितृभूमि नहीं, किन्तु इनका मुनाफा है । पूंजीवादी पद्धति सार्वभौमिक है। इस कारण भौगोलिक हदे टूट रही है और अन्तर्राष्ट्रीयता वढ रही है । पूंजीवादी वर्ग अपने भौगोलिक राज्यकी इतनी परवाह नहीं करता जितना अपने वर्गके स्वार्थोकी । जिस प्रकार समाजवादियोंका कहना है कि मजदूरोकी कोई पितृभूमि नही है 'दुनियाके मजदूर एक हो जायो' उसी प्रकार पूंजीवादी गुटका भी यही नारा है कि हमारी पितृभूमि कोई नहीं है, दुनियाके पूंजीवादियो ! प्रायो हम सब मिलकर जनताको क्रान्तिको दबाने और अपने वर्गको सुरक्षित करनेके लिए एक हो जाये । जहाँ समाजवादी ससारको पीडित और शोपित जनताका संयुक्त मोर्चा बनाते है वहाँ मुट्ठीभर ससारके पूंजीपति भी अपने स्वार्थोकी रक्षाके लिए जनताके विरुद्ध संयुक्त मोर्चा बनाते है । अपने स्वार्थोकी रक्षाके लिए यदि युद्धकी आवश्यकता हो तो उनके लिए भी तैयार है और अपने देगकी भोली-भाली जनताको तलवारके घाट उतारनेमें जरा भी दरेग नहीं करते । वर्गके भीतर भी संघर्प चलता रहता है, किन्तु जब जनतासे किसी भी साम्राज्यवादी राष्ट्रको खतरा पैदा होता है तो जनताको कुचलनेके लिए साम्राज्यगाहियाँ एक हो जाती है और जन-क्रान्तिसे अपनी रक्षा करनेके लिए आपसकी लडाई भी बन्द कर देती है । पिछले यूरोपीय यु द्धमे यही हुया । शुरूमे लड़ाई जारी रखनेकी कोशिश की गयी, जव लम्बाई-चौडाईके कारण जनताको आँखे खुली, वह युद्धकी भीषणता और वास्तविकता- को समझनेमें लगी और फौजमे भी अशान्ति फैलने लगी, तव पूंजीवादियोके गुटने गान्तिका प्रयत्न करना शुरू कर दिया । जर्मन और फ्रासीसी सिपाही लडाईसे ऊब कर आपसमें भाईचारा वढाने लगे। जगह-जगह फौजमे विद्रोह होने लगे। सिपाही लडाईका मैदान छोडकर भागने लगे। रूसकी जो फौज फ्रांस लायी गयी थी उसने वेस्ट लिटास्क सुलहनामोके वाद लड़नेसे इनकार कर दिया। इसपर उनके हथियार छीन लिये गये और १०, ००० सिपाहियोका कत्लेग्राम हुआ । यह इमलिए किया गया ताकि उनका छूत फ्रासीसी सिपाहियोको न लगे । सन् १९१८ मे यहाँतक हालत हो गयी थी कि फ्रासकी गवर्नमेण्ट आमतौरसे अपनी फोजोपर अविश्वास करती थी। इधर शहरोमें हडतालें शुरू हो गयी और ऐसी हालतमे यदि लड़ाई कुछ दिन बार जारी रहती तो सामाजिक क्रान्तिका होना अनिवार्य था। रूसकी क्रान्ति १९१७ मे सफल हो चुकी थी। उससे एक नवीन प्रेरणा क्रान्ति- कारियोको मिलती थी । पूँजीवादियोके लिए यह एक नया खतरा था। साम्राज्यशाहीको लड़ाईमे दस्तूर है कि एक राष्ट्र जीतता है और दूसरा हारता है । यह एक ऐसी चिन्ताजनक वात न थी, किन्तु जब साम्राज्यशाहियोको समान रूपसे जनक्रान्तिसे खतरा पैदा हो जाता