पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१२६

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भारतकी स्वाधीनताका प्रश्न ११३ 2 है तव युद्धको वन्द करनेमे ही उनकी रक्षा होती है, इसलिए जब यह खतरा पैदा हुआ और दूसरे तरीके इस खतरेको दूर न कर सके तभी आर्थिक अवरोध लडाईके साथ लागू कियाँ गया और सुलहकी वातचीत शुरू की गयी । लड़ाई बन्द होनेमे देर न हुई, क्योकि यूरोपके शासक-वर्गने सामान्य खतरेको जल्द पहचान लिया । इधर लडाई वन्द की गयी और उधर जनक्रान्तिको दबानेके मनसूवे मिल-जुलकर होने लगे। विजयी और पराजित सेनाकों एक दूसरेसे अलग रखा गया । 'क्लिमेंशोने प्रस्ताव किया कि क्रान्तिको रोकनेके लिए अमेरिकाकी फौजसे सहायता ली जाय । फ्रासके अखवारोने रूसकी नयी आजादीका गला घोटनेके लिए लूडेनडार्फको समस्त अधिकार देनेकी चर्चा चलायी। मित्रराष्ट्रोकी मंजूरीसे एक जर्मन दस्ता रूस-क्रान्तिके विद्रोहियोकी मददके लिए फिनलैण्ड भेजा गयां जो फिनलैण्डकी राजधानी हेलपिगफोर्सके ४० हजार समाजवादियोके कत्लमे मददगार हुया । लडाई वन्द कर मास्कोपर धावा बोलनेका प्रस्ताव अमेरिकाके राष्ट्रपति वुडरो विलसनको दिया गया, किन्तु विलसनने इस प्रस्तावको मजूर नही किया । बर्लिनके स्पाकिस्ट ( Spartacist ) नामक समाजवादियोको दवानेके लिए ५००० मशीनगने जर्मनोके हाथमें छोड़ दी गयी। इस तरह साम्राज्यवादी युद्ध एक दूसरे तरीकेके युद्धमे परिवर्तित हो गया । अव साम्राज्यशाहियाँ भी मिलकर जनतासे लडने लग गयी। सामाजिक प्रणालीको सुरक्षित रखनेके लिए धनीवर्गने हर तरहकी चाल खेली। उसके लिए एक नयी समस्या उठ खडी हुई। यह वर्ग-समस्या थी। यह समस्या उसके लिए सर्वोपरि थी। इसने राष्ट्रनीतिमे काफी उलट-फेर किया । मध्यम श्रेणीमे वर्ग-चेतना बहुत बढ गयी । सन् १९१४-१८ के इतिहासने उसके दिलोंको दहला दिया । यही कारण है कि जब हिटलरने यह दावा पेश किया कि वह बोल्शेविज्मको नेस्तनाबूद करना चाहता है तो साम्राज्यशाहियोने उसे सामाजिक क्रान्तिको रोकनेका एक बॉध समझकर मजबूत करना शुरू किया । फैसिस्टोको सन्तुष्ट करनेकी नीति ( Appeasement Policy ) का यही रहस्य है। स्पेनके प्रजातन्त्रको कुचलनेकी साजिशका भी यही रहस्य है । इस साजिशमें ब्रिटेन और फास भी सम्मिलित थे। हालांकि फैकोकी जीतने हिटलरको मजबूत कर दिया और फ्रासको ब्रिटेनका आश्रित वना दिया, हिटलरने वोल्शेविज्मका हौवा दिखाकर अपना मतलव साधा और यूरोपकी ताकतोको वेवकूफ बनाकर अपने राज्यका विस्तारविना लडाईके किया और लडाईका अवसर प्रानेपर उसी वोल्शेविक रूससे समझौता भी कर लिया । यह सब इसीलिए सम्भव हुआ क्योकि शासकवर्ग जनक्रान्तिको बचाना चाहते थे और वर्गके स्वार्थ उनके लिए सर्वोपरि हो गये थे। लुत्फ तो यह है कि यह लोग बराबर शान्तिकी रट लगाये रहते है। एक भी आदमी ऐसा नही है जो यह कहे कि हम शान्ति नही चाहते, शान्तिकी स्थापनाके लिए नाना प्रकारके आयोजन भी करते है, किन्तु तिसपर भी युद्ध नही टलते। नि शस्त्रीकरणके बिना शान्ति कायम नही हो सकती लेकिन शासकवर्ग ऐसे अडगे लगाता है जिससे नि शस्त्रीकरण नही हो पाता । इसका कारण यही है कि पूंजीवादी अपने मुनाफेको सबसे पहले देखते है । अस्त्र-शस्त्र तैयार कर वह कृत्रिम तरीकेसे वेकारीको भी घटाते है । इससे यह दिखानेकी ८