पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१२७

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११४ राष्ट्रीयता, और समाजवाद भी कोशिश की जाती है कि आर्थिक मन्दी कम हो रही है और सम्पत्की अवस्था लीट रही है। यदि आज नि.शस्त्रीकरण हो और उत्पादनकी पद्धति साथ-साथ वदली न जाय तो बेकारी बहुत बढ जायगी जिससे क्रान्तिका खतरा भी वढ जायगा । इस वजहसे भी नि शस्त्रीकरणका विरोध किया जायगा । यह साफ है कि जबतक पूँजीवादी पद्धति प्रचलित है तवतक युद्ध अनिवार्य है । यदि आप युद्धका अन्त करना चाहते है तो पूंजीवादी पद्धतिके अन्तके लिए तैयार हो जाइये । पर साधारणतः लोग इन दोनोके घनिष्ठ सम्वन्ध- को नहीं समझते । पिछ्ले युद्धकी चर्चा हमने इसलिए की जिसमे पाठकोको मालूम हो जाय कि साम्राज्यशाहीपर सकट पानेके कारण जनक्रान्तिको सम्भावना कितनी अधिक हो जाती है। यदि लडाई चन्द महीने भी और चलती तो निस्सन्देह फ्रास और जर्मनीमे समाजवादी पद्धति कायम हो जाती। इसके फलस्वरूप सारे यूरोपका कायापलट हो जाता । पिछली वार जनक्रान्तिकी सहायता करनेमे कई कारण थे। पहले तो लडाई वहुत लम्बी चली और उस समयतक सेनाका यंत्रीकरण ( Mechanization ) इतना नही हुआ था जितना कि अब हो गया है जिसकी वजहसे उस समय नरसहार अत्यधिक हुआ । दूसरा कारण यह कि संसारकी नैतिक सहायता प्राप्त करनेके लिए मित्रराष्ट्रोने वडे-वडे आदर्शोकी घोषणा की थी। मित्रराष्ट्रोकी अोरसे कहा गया था कि लड़ाई जनतन्त्रकी रक्षा और विस्तारके लिए है और भविष्यमें अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध नये आधारपर कायम होगे जिससे युद्धोका सदाके लिए अन्त हो जायगा । युद्धके दौरानमे इस घोपणासे भी प्रेरणा मिली थी, पर युद्ध के बाद भी जनक्रान्तिको इससे वरावर प्रेरणा मिलती रही, क्योकि मित्रराष्ट्रोने अपने वादोको पूरा नही किया और इस प्रकार जनतामे उत्तेजना और अशान्ति उत्पन्न की। हमने ऊपर देखा कि युद्धकालमे यद्यपि शासकवर्गके समयसे होशियार हो जानेसे जनक्रान्ति हर जगह न हो सकी तथापि लम्बी चौड़ी वाते करनेसे और वादको उनको पूरा न करनेसे क्रान्तिका सिलसिला फिर शुरू हुआ । एशियामें तो खासकर युद्धके समाप्ति- के बाद ही क्रान्तिका सिलसिला शुरू हुआ था । सन् १९१६ मे मिस्र, भारत और चीनमे नया सिलसिला शुरू हुआ था। सन् १९२१ मे ईरानके शाह गद्दीसे उतारे गये और सन् १९२३-२४ मे तुर्कीमे प्रजातन्त्र कायम हुअा। लड़ाईके जमानेमे या तो क्रान्ति सर्वसाधारण हो जाती है या केवल उन्ही देशोमे होती है जो लड़ाईमे परास्त होते है अथवा जहॉकी फौज लड़ाईमे शरीक होनेसे इनकार करती है । इस वारका युद्ध कुछ दूसरे ढगका है । इसमे आदमियोंकी उतनी जरूरत नहीं पड़ती जितनी पिछली वार पडी थी। इस वार शासकवर्ग पिछली भूलको दुहराना भी नही चाहता । आज वह युद्ध और शान्तिके उद्देश्योका स्पष्टीकरण करनेको तैयार नहीं है, क्योकि वह जानता है कि जनतामे आशा पैदा करना और फिर उसे पूरा न करना काफी खतरनाक होता है । इसका कटु अनुभव उसको पिछली वार हो चुका है। आज उसकी वर्गचेतना भी वहुत वढ़ी-चढी है। इसीलिए यह भरसक ऐसा प्रयत्न करना चाहता है जिससे जनक्रान्ति न होने पावे । इसीलिए यदि आगे चलकर जनक्रान्तिकी सम्भावना