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पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१३६

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अगस्त-क्रान्तिका स्वरूप और उसका सन्देश १२३ अपने लेखो और भाषणोंद्वारा महात्माजी तथा काग्रेसके दूसरे नेताओने आन्दोलनके लिए वातावरण पहलेसे ही तैयार कर रखा था। काग्रेस-कार्यसमितिके सदस्योंकी गिरफ्तारीकी वातको ध्यानमे रखते हुए यह आदेश जारी कर दिया गया था कि नेताअोकी गिरफ्तारीके पश्चात् हर व्यक्ति अपनेको ही अपना नेता समझे और अहिंसाके दायरेके भीतर रहते हुए जो उचित समझे करे। इस आदेशके वावजूद यह तर्क करना कि महात्माजी गिरफ्तार हो गये और आन्दोलन छेड नही सके, अतः जो आन्दोलन प्रारम्भ हुआ वह काग्रेसका आन्दोलन नही वरन् नेताअोकी गिरफ्तारीपर केवल विरोध-प्रदर्शन था, मेरी रायमे शाब्दिक तर्क मात्र है, कोरी वकालती बहस है । मेरा अनुमान है कि महात्माजी राष्ट्रीय मांगको लेकर वायसरायसे बाते करनेवाले थे, इसी कारण सम्भवतः वे सत्याग्रहका स्पष्ट कार्यक्रम रखना उचित नहीं समझते थे। किन्तु देशकी अनिश्चित अवस्थाको देखते हुए वे चुप भी नही बैठ सकते थे। इस कारण उन्होने वीचका मार्ग अपनाया अर्थात् 'भारत छोड़ो' प्रस्ताव अखिल भारतीय काग्रेस कमेटीसे स्वीकृत कराया। कार्यक्रमका दिया जाना यद्यपि उचित ही होता, किन्तु जनताकी तत्कालीन मनोदशाको देखते हुए यह नि संकोच रूपसे कहा जा सकता है कि कार्यक्रमके रखे जानेसे भी आन्दोलनके स्वरूपमे अन्तर न आता। प्रश्न---अगस्त-आन्दोलनसे राष्ट्रीय कार्यकर्तामोको क्या प्रमुख शिक्षाएँ मिलती है ? उत्तर-इस आन्दोलनने दिखलाया कि जनता बहुत आगे बढ़ गयी है, कार्यकर्तागण पीछे रह गये है। प्रचारका कार्य बहुत हो चुका, जनतामे क्रान्तिकारी चेतनाका विकास सन्तोषजनक सीमातक हो चुका है, आवश्यकता है इस चेतनाको सघटनात्मक रूप देनेकी । कार्यकर्तायोको क्रान्तिके स्वरूपका अध्ययन करना चाहिये और उसका सचालन करनेके लिए क्रान्तिकारी रचनात्मक सघटन-कार्यमे जुट जाना चाहिये । क्रान्तिका संचालन करनेकी कलाके साथ कार्यकर्तायोको यह भी समझना चाहिये कि सत्ता हाथमे आनेपर उसे कैसे बनाये रखा जा सकता है। प्रश्न- क्या आपकी रायमे अगस्त-आन्दोलनमे अपनायी गयी तोड़-फोड़की प्रणाली । काग्रेसकी अहिंसा-नीतिके विरुद्ध थी ? उत्तर-मै हिंसा-अहिंसाकी शास्त्रीय वहसमे पडना नही चाहता । हिंसा-अहिसाका सूक्ष्म विचार बहुत कठिन है । इस विषयमे विद्वान् भी मोहको प्राप्त होते है । किन्तु इस सम्वन्धमे मेरा मत यह है कि जितने मानवोचित और प्रभावशाली उपाय है उन सबका अवलम्बन किया जा सकता है। उपायोके औचित्यका विचार करनेमे उनकी नैतिकताका भी विचार करना होता है, किन्तु नैतिकताका मापदण्ड ऐसा न होना चाहिये जिसके अनुसार कार्य करना सामान्य जनोके लिए असम्भव हो । प्रश्न-अगस्त-आन्दोलनके अनुभवोंके प्रकाशमे आपकी रायमे काग्रेसको अपने शान्तिकालीन रचनात्मक कार्यक्रममे क्या परिवर्तन करना चाहिये ? उत्तर-इसमे सन्देह नही कि सामाजिक सुधार अथवा शिक्षाके प्रचारके लिए जो कार्य किया जाय उससे राष्ट्रकी पुष्टिमे सहायता मिलती है किन्तु राजनीतिक दष्टिसे