१२४ राष्ट्रीयता और समाजवाद हम उसी रचनात्मक कार्यक्रमको महत्व देगे जो प्रत्यक्ष रूपसे विदेशी सत्ताको हटाने और अपनी सत्ताको कायम करनेमे सहायक होता हो । इस दृप्टिसे किसानो और मजदूरोंका उनकी आर्थिक मांगोंके आधारपर संघटन, गाँवोंमे आत्मरक्षाका कार्य करनेवाले स्वयं- सेवकोका संघटन, ग्राम-पंचायतोकी स्थापना, शासन-पद्धतिसे स्वतन्त्र सहयोग-समितियोंकी स्थापना, विशेष महत्वके है जो अन्य शान्तिकालीन रचनात्मक कार्य है उनका महत्व तभी है जब कि उन्हें इस कार्यक्रमके साथ ग्रानुपगिक रूपसे रखा जाय । प्रश्न--क्या अगस्त-क्रान्तिके परिणामस्वरूप आपको स्वाधीनता-यान्दोलनके लिए किसी प्रकारका खतरा दिखायी पड़ता है ? उत्तर-इस आन्दोलनमे लोगोने जिस साहस, शौर्य आदिका परिचय दिया उसके लिए उचित आदर रखते हुए भी हमको उसकी त्रुटियोंकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिये । एक यह भूल हो सकती है कि हम संग्रामके उस स्वरूपको ही अतिरञ्जित महत्व देने लग जायँ और उसको महज दुहरानेकी चेष्टा करे । वास्तविक जन-क्रान्तिके स्वरूपके लिए मजदूरोकी आम हडताल और किसानोकी लगानवन्दीका होना बहुत आवश्यक है। इमे इस वातका ध्यान रखना है कि अान्दोलन कुछ चुने हुए व्यक्तियोके समूहोका आतंकवादी विद्रोह नही वरन् देशव्यापी पैमानेपर जनताकी क्रान्ति हो ।' सफल क्रान्तिकी तैयारी कीजिये सन् १९४२ मे आन्दोलनके मुकावलेमे पहले आन्दोलन प्रदर्शनमात्र थे, स्वतन्त्रताकी प्राप्तिके लिए हमारा यह पहला प्रयास था। इसको हम सच्चे अर्थमे जनताकी क्रान्ति कह सकते है । इस क्रातिमे लाखो भारतवासियोने भाग लिया और हजारो नवयुवकोने प्राणोकी वाजी लगाकर भारी खतरेको उठाया । इसकी रूपरेखा थी जो उन प्रान्तियोकी होती है जिनका नेतृत्व जनता स्वय करती है और जिनकी प्रगति स्वरसेन (स्वतःप्रसूत) होती है । ऐसी क्रान्तिकी जो खूवियाँ होती है वह इसमें भी पायी जाती है और उसकी त्रुटियाँ भी। सामाजिक क्रान्तिकी दृष्टिसे इसका महत्व नही है, किन्तु राष्ट्रीय क्रान्तिकी दृष्टिसे इसका वहुत ऊँचा स्थान हे । पुन: यह भी ठीक है कि इस क्रान्तिके फलस्वरूप जनतामे अपूर्व जागृति हुई है और सामाजिक क्रान्तिकी यह आधार-शिला है । यह क्रान्ति ८ अगस्तके प्रस्तावसे सम्बद्ध है। यह प्रस्ताव ऐतिहासिक महत्व रखता है और प्रत्येक दृष्टिसे अपने समयके लिहाजसे यह पूर्ण है । हम इस प्रस्तावको युगके अनुकूल पाते हैं । इसकी राष्ट्रीयता सकुचित नहीं है, किन्तु उदार है और अन्तर्राष्ट्रीयताके साथ । इसका सामंजस्य है । राष्ट्रीयताकी भावना आज भी प्रवल है और प्रत्येक युद्धके पश्चात् वह और भी प्रवल हो जाती है । जव रूसमे आज हम राष्ट्रीयताका बोलबाला पाते है तब उन देशोका क्या कहना जो अभी अपनी स्वतन्त्रताके लिए लड रहे है । राष्ट्रीयता १. 'समाज' ८ अगस्त, १६४६ ई०
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