पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१३२ राष्ट्रीयता और समाजवाद है कि वे अपनेको संकटग्रस्त देख उपनिवेशोकी स्वतन्त्रता भी स्वीकार कर लते है, किन्तु जहाँ कि वे एक ओर सिद्धान्तरूपमे स्वाधीनता स्वीकार करते हैं वहां मित्रताकी मन्धिके वहाने दूसरी पोर ऐसी शर्ते लगा देते है कि स्वाधीनता केवल ग्रालंकारिक गौरवकी वस्तु रह जाती है । मित्रकी स्वाधीनता कवकी स्वीकार की जा चुकी है किन्तु आज भी ब्रिटिश फौजे वहाँसे विदा नही हुई, ईराककी सन्धिके अनुसार युद्धकी श्राशका होनेपर ही ब्रिटिश फौजे वहां भेजी जा सकती है, किन्तु आज युद्धकी आशंका न होते हुए भी भारतीय फौजें वसराके बन्दरगाहमे डटी हुई है । ट्रासजाटनको इसी प्रकारकी स्वाधीनता कुछ मास पूर्व ब्रिटेनने प्रदान की है। पूंजीपतियोंका गठवन्धन नामकी स्वाधीनता हुए भी किस प्रकार प्रौद्योगिक दृष्टि से अनुन्नत प्रौर सैनिक दृप्टिसे निर्वल देश वहाँके पूंजीवादी शासको तथा विदेशी कूटनीतिज्ञोंकी सहायतामे साम्राज्यवादी शोपणके शिकार बनाये जा सकते है इसका ज्वलन्त उदाहरण एशियाकी सबसे बड़ी जनसंख्यावाला देश हमारा पड़ोसी चीन है। चीन अमेरिकाका उपनिवेश नहीं है, किन्तु चीनी कम्युनिस्टोके विरुद्ध च्यागकाई शेककी सरकारको और पूंजीवादी नेतृत्वसे प्रभावित कोमिंताग दलकी अमेरिका शस्त्रास्त्रोसे सहायता कर रहा है और ऋणकी लम्बी रकम देकर केन्द्रीय सरकारकी तवाह आर्थिक अवस्थाको सँभाल रहा है। बदमे च्यांगकाई शेककी अनुगृहीत सरकार अमेरिकन पूंजीको चीनमे सब प्रकारकी सुविधाएं देनेको तैयार है । आजके स्वदेशीकी भावनाको जमानेमे पूरी तरह अमेरिकन पूंजीसे चलाये जानेवाले कारखाने भले ही न खड़े किये जायें, पर अमेरिकन और चीनी दोनो ही प्रकारकी सम्मिलितपूंजीसे अनेक कारखाने चीनमे खुलेगे और देशी और विदेशी पंजीपति सम्मिलितं रूपसे चीनी जनताका शोषण करेगे । जब अमेरिका चीनी कम्युनिस्टोके खिलाफ कोमितागकी सहायता कर रहा है तो अमेरिका और रूसका युद्ध छिडनेपर कोमितांग-दल निश्चय ही रूसके विरुद्ध अमेरिकाकी मदद करेगा। यह सहयोगात्मक साम्राज्यवाद ही आजके युगका सबसे बडा सकट है जिससे जनताको सावधान होनेको आवश्यकता है । अतः आइये, स्वाधीनता दिवसके इस पुण्य पर्वपर हम प्रतिज्ञा करे कि विदेशी आधिपत्यके प्रत्येक रूपका जवतक हम अन्त न कर लेगे तबतक हम अपने साम्राज्य- विरोधी क्रान्तिकी तैयारी वन्द न करेंगे और चैनकी सास न लेगे। यदि हमारे पुराने और अनुभवी नेता यह समझते है कि समझौतेके रास्तेसे स्वराज्य मिल सकता है तो वह समझौतेकी कोशिशमें लगे रहे, किन्तु युद्धकी तैयारीको भी जारी रखे। वर्माके फासिज्म- विरोधी जन-सघके युवक नेता श्री प्रागसानके शब्दोमे हम अच्छेसे अच्छे परिणामकी आशा करे, किन्तु वुरेसे बुरे परिणामके लिए तैयार रहें ।' १. 'समाज' ३० जनवरी, १९४७ ई०