कांग्रेस किधर १३५ कि देशके स्वतन्त्र होनेपर काग्रेसकी आवश्यकता न रह जायगी। प्राचार्य कृपलानीने भी इसी तरहका विचार व्यक्त किया है। कुछ और नेता भी इसी विचारके मालूम होते है, किन्तु अधिकाश नेता, काग्रेस-सस्थाको जीवित रखना चाहते है । हम समझते है कि यह दूसरे वास्तविकताको ज्यादा पहचानते है । अधिकारारूढ होनेपर अपनी सत्ता वनाये रखनेके लिए काग्रेसकी प्रतिष्ठा और मर्यादा उपयोगी सिद्ध होगी, इस लाभको वह नही छोड़ना चाहेगे । कुमोमिनताग भी आजतक एक दलके रूपमे जीवित रहा है और आज जब अन्य दलोसे समझौता करनेको वाध्य हो रहा है तव भी वह जनतान्त्रिक ढगको स्वीकार करनेके लिए अपनी प्रस्तुतता दिखाता है। किन्तु यदि महज इस कार्यके लिए काग्रेसको जिन्दा रखना है तो फिर यह समझ लेना चाहिये, कि उसका वह पुराना स्वरूप नहीं रहेगा। तव काग्रेसकी राजनीति बदल जावेगी और वह विशेप रूपसे चुनावकी एक मशीन वन जावेगी । ऐसी अवस्थामे ऐसी सस्थाअोमे जो दोप आ जाते है वह काग्रेसमे भी आ जावेगे । कुमोमिनतागका उदाहरण हमारे सम्मुख है। फिर त्याग और तपस्याका वातावरण काग्रेसमे नही रहेगा और शक्तिके लिए छीना-झपटी शुरू हो जावेगी। भविप्यमे उसको एक दूसरे प्रकारके नेतृत्वकी आवश्यकता होगी। वैधानिक पण्डितोका महत्त्व बढेगा । किन्तु आज हमारी नीति सर्वथा अस्पप्ट है । एक ओर कहा जाता है हमारा कार्य समाप्त हो गया है और दूसरी ओर हमसे त्यागी और तपस्वी होनेको कहा जाता है । यदि वास्तवमे लक्ष्यकी प्राप्ति हो गयी है और लक्ष्य स्वतन्त्रतातक ही सीमित है और उसके रूप-रंगकी फिक्र नही है तो उन लोगोको जो कानूनके बनानेमे रस लेते है और जो वैधानिक योग्यता रखते है आगे लाना चाहिये । किन्तु हम ऐसा भी नही करते है, क्योकि ऐसा करनेसे नेतृत्व दूसरोके हाथमे चला जावेगा और स्थिर स्वार्थीको धक्का लगेगा। हमारी गति विचित्र है । हमको समझ लेना चाहिये कि काग्रेसको यदि चुनाव- की मशीन बनाना है तो फिर त्याग और तपस्याकी बात करना व्यर्थ है और आजका रोना भी व्यर्थ है। उस हालतमे power politics को प्राधान्य मिलेगा और अन्य स्वतन्त्र देशोके समान हमारे राजनीतिज्ञ भी दुनियादार वन जावेगे और अपने अगके स्वार्थोकी रक्षामे लग जावेगे । काग्रेसमे एक प्रकारका और विचार भी पाया जाता है, इसका विवेचन करना भी आवश्यक है। वह यह है कि स्वतन्त्रताकी रक्षाके लिए अव काग्रेसजनोको रचनात्मक कार्यमे लग जाना चाहिये । किन्तु अंब जब सभी सरकारी कर्मचारी देशभक्त हो गये है तो यह काम उन्हीके सुपुर्द क्यो नही किया जाता ? रचनात्मक कार्यकी व्याख्या करते समय यह सज्जन महात्माजीके कार्यक्रमकी ओर पुन हमारा ध्यान दिलाते है, किन्तु वह भूल जाते है कि महात्माजी द्वारा निर्धारित कार्यक्रम देशको स्वतन्त्र करनेके लिए प्रभावशाली बनाया गया था। यह हो सकता है कि जो कार्यक्रम स्वतन्त्रता दिलानेमे समर्थ हो वही उसकी रक्षा भी कर सके । अतः हमको इस कार्यक्रमकी परीक्षा इस दृष्टिसे करनी चाहिये । इस कार्यक्रममे कई वातोका समावेश है। कुछ वाते तो ऐसी है जिनकी प्रत्येक समाजको आवश्यकता पडती है । उनका स्वतन्त्रताकी रक्षाके प्रश्नसे कोई विशेष सम्बन्ध नहीं है । पुन कुछ बाते ऐसी है जिनका सम्बन्ध 1
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