पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१४९

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राष्ट्रीयता और समाजवाद समाजके आर्थिक संगठनसे है, यथा खद्दरका उत्पादन और ग्रामोद्योग । प्रश्न यह है कि क्या स्वतन्त्र भारतको इस कार्यक्रमकी प्रौद्योगिक नीति स्वीकृत होगी? कांग्रेस गवर्नमेण्ट ही इस नीतिको अपनाती नही मालूम होती है । चाहिये तो यह कि हम पहले अपनी अर्थ-नीतिको निर्धारित करें और उसके अनुसार गवर्नमेण्ट अपना कार्यक्रम बनावे, किन्तु हम करते है इसके सर्वथा विपरीत । हम एक कार्यक्रमको स्वीकार कराना चाहते है और यह नही देखते कि यह कार्यक्रम किसी अर्थ-नीतिको स्वीकार करके ही बना है। इस सम्वन्धमे यह भी विचारणीय है कि व्यक्ति तथा व्यक्तियोके समूह इसके लिए क्या कर सकते है । आर्थिक योजना बनाना गवर्नमेण्टका काम हे और उसको कार्यान्वित करना भी उसीका काम है। हाँ, यदि आर्थिक योजना इस प्रकारकी है जिससे सामाजिक संगठन लोकतंत्रात्मक वनता है और जिसके द्वारा उत्पादनके साधन समाजकी मिलकियत हो जाते है, तव इनका महत्व सामाजिक और सांस्कृतिक हो जाता है। उस अवस्थामे जीवनकी नयी दिशाकी अोर सर्वसाधारणको मोड़नेके लिए प्रचारकी आवश्यकता होती है और यह काम नि.स्वार्थसेवी ही कर सकते है। उस अवस्थामे किसी गैर-सरकारी संस्थाकी भी आवश्यकता पड़ती है, पर तव केवल कार्यक्रमका उल्लेख न कर सिद्धान्तोंका स्पष्टीकरण होना चाहिये और समाजकी नयी रूपरेखाके अनुसार ही एक पूर्ण योजना प्रस्तुत करनी चाहिये । उक्त कार्यक्रमकी आर्थिक योजना भी अधूरी है और आजके युगके अनुरूप नही है । आजके युगकी आत्म-तृप्तता ( autarchy ) का नियम नहीं चल सकता। पुनः इस रचनात्मक कार्यक्रमके अन्य अग किसान, मजदूर और विद्यार्थियोके सगठनसे सम्बन्ध रखते है, पर प्रश्न यह है कि यह संगठन किस उद्देश्यसे है और जवतक उद्देश्य स्पष्ट नही किया जाता हमारा कार्य निरुद्देश्य होनेसे कुछ अधिक लाभदायक नहीं होगा। मजदूरोके संगठनके प्रश्नको ही ले लीजिये । इनका सगठन कई दृष्टिसे हो सकता है। एक दृष्टि यह भी है कि आज जब अनेक दल मजदूरोमे काम कर रहे है और उनके कामसे गवर्नमेण्टोको कुछ परेशानी हो रही है तो मजदूरवर्गपर कांग्रेसद्वारा काग्रेस- गवर्नमेण्टका नियंत्रण कायम करना उपयोगी होगा। हम समझते है कि शायद यही दृष्टि इन महानुभावोके सामने है । आज काग्रेसके अनुसार गवर्नमेण्टोको चलानेकी बात नही कही जा रही है । आज तो माँग इस वातकी है कि काग्रेस-मशीन गवर्नमेण्टोकी सहायता करे और उसके निश्चयोको कार्यान्वित करानेमे मददगार हो । हर जगह काग्रेस गवर्नमेण्टे हड़तालके विरुद्ध है और काग्रेस नेता हडतालोको बन्द करानेका हर प्रकारसे प्रयत्न करते है । इतना ही नही, यह कहा जाता है कि अब कांग्रेस गवर्नमेण्टके होते हड़तालकी आवश्यकता ही क्या है। यह लोग कराँचीके मौलिक अधिकारोके प्रस्तावको भूल गये है । कही-कही केवल यूनियन (संघ) बनानेकी चेष्टा करनेपर ही प्रत्येक सेफ्टी कानूनके अनुसार कार्यकर्ता नजरवन्द कर लिये जाते है । इंगलण्ड और अमेरिकामे आये दिन हड़ताले होती है, युद्धकालमे वड़ी-बड़ी हड़ताले हुईं, यहाँ भी हो रही है । इस प्रवाहको कौन रोक सकता है ? मजदूरोकी उचित मांगे