पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१५०

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! कांग्रेस किधर १३७ पूरी कीजिये, हडताले आप ही बन्द हो जायँगी, पर शासकोको प्रत्येक दशामे कोचना होता है तभी सामाजिक न्याय मिलता है, इसीलिए हड़तालके अन्तिम अस्त्रको हम मजदूरोसे नही छीन सकते; यह अधिकार उनको प्राप्त होना ही चाहिये । यह तर्क कि कारखानोके बन्द होनेसे कपडे आदिकी और कमी हो जावेगी-मजदूरोके गले नही उतरता । यह 'उपदेश मिलमालिकोको देना चाहिये और आज महँगीके जमानेमे जव मजदूरोकी क्रयशक्ति बहुत कम हो गयी है उनकी मजदूरीका पर्याप्त मात्रामे बढ़ाया जाना परम आवश्यक है । यह कहा जायगा कि उक्त कार्यक्रमकी आवश्यकता किसान-मजदूर राज कायम करनेके लिए है। उत्तरमे हमारा यह निवेदन है कि हमने तो एक प्रकारसे इस नारेको भुला-सा दिया है । लोग यही समझते है कि अगस्त सन् १९४२ का प्रस्ताव 'अग्रेज, भारत छोडो' मात्र था। उसके और आवश्यक अंग भुला दिये गये है । इसीलिए लोग समझते है कि हमारा कार्य समाप्त-सा हो गया है । हमने इस महान् उद्देश्यके लिए लोगोकी मनोवृत्तिको काफी तैयार नही किया था शायद इसीलिए ये अत्यन्त महत्वपूर्ण अश भुला-से दिये गये है, अन्यथा इसकी इस प्रकार उपेक्षा नही होती । काग्रेसको अपना लक्ष्य स्थिर करना होगा । फिर वह जो कुछ हो, उसीके अनुसार कार्यक्रम बनेगा । यदि काग्रेसको चुनावकी मशीनमात्र बनाये रखना है तो बड़े-बड़े आदर्शोकी बात छोड़ देनी चाहिये । किन्तु यदि वास्तवमे किसान-मजदूर-राज्यकी स्थापना करना काग्रेसका अव भी लक्ष्य है तो काग्रेस-द्वारा इसको स्पष्ट रूपसे स्वीकार कराना चाहिये और हमारे प्रत्येक कार्यमे इसको प्रथम स्थान मिलना चाहिये । आज काग्रेस द्वारा उन्हीका आप्यायन होता है जो किसी-न-किसी पदपर आरूढ है, इनमेसे कुछकी महत्त्वाकाक्षाकी पूर्ति होती है, इसलिए वह सन्तुष्ट है । कुछ ऐसे पदो- पर नियुक्त है जहाँ रहकर वह कुछ सार्वजनिक सेवा कर सकते है । इस प्रकार उनका भी आत्मसतर्पण होता रहता है। किन्तु सामान्य काग्रेस-जनकी उच्च भावना तथा उसकी आदर्श प्रियताकी सन्तुष्टि नहीं होती। हमको यह न भूलना चाहिये कि किसी सस्थाकी परख उसके चोटीके नेताअोसे नहीं होती। महान् पुरुषोको तो भारत सदा जन्म देता रहा है, किन्तु उनके होते हुए भी हम अवनतिके गर्तमे समय-समयपर गिरते रहे है । सस्था- की परख उसके द्वितीय-तृतीय श्रेणीके कार्यकर्तामोसे होती है । अत यह धारणा मिश्या होगी कि जबतक हमारे पास महात्माजी, जवाहरलालजी और मौलाना आजाद ऐसे नेता है तवतक सब कुशल है, हमारा अनिष्ट नही हो सकता। यदि हम वास्तवमे किसान-मजदूर-राज्यके पक्षमे है तो हमको यह स्थूल सत्य समझ लेना चाहिये कि ऐसे राज्यकी स्थापना किसान-मजदूर स्वयं ही करेगे। हम उनके लिए उसकी स्थापना नही कर सकते, हमारा केवल इतना काम है कि हम उनको इस उद्देश्यकी प्राप्तिके लिए संगठित करे, किन्तु यह संगठन हडतालके हथियारको छीनकर नहीं हो सकता और न मजदूरोको यह बतानेसे ही हो सकता है कि वह अपने सेवा योजकोपर पूर्ण विश्वास रखे और केवल अनुनय-विनयसे ही काम ले । जब शुद्ध मजदूर आन्दोलन इस