पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१५१

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१३८ राष्ट्रीयता और समाजवाद अस्त्रके कभी-कभी प्रयोगके विना नही चल सकते तव किसान-मजदूर-राज्यकी स्थापनाकी बात तो दूर रही इसके लिए एक दूसरी क्रान्तिकी ही आवश्यकता होगी। सब वातोंपर विचारकर यही उपयुक्त प्रतीत होता है कि कांग्रेस एक छोटा-मा ध्येय अपने सामने रखकर उसके अनुरूप कार्यक्रम प्रस्तुत करे, किन्तु अब उसे अपने कार्यके स्वरूपको स्पप्ट ढंगसे स्थिर करना होगा । नीतिको अस्पष्ट रखनेसे अब काम नहीं चलेगा। किन्तु काग्रेसको महज चुनावकी मशीन बनाकर त्याग और तपस्याकी ग्राणा करना व्यर्थ है । उस अवस्थामे काग्नेस संस्थाका वही रूप होगा जो अन्य देशोमे ऐसी संस्थानोका हुया करता है। लोकतन्त्रको स्थापनाका मार्ग पाकिस्तानकी माँग मुसलिम लीगके नेतायो द्वारा मुसलिम जनताकी हीन-भावना और आकांक्षायोकी पूर्ति न होनेके कारण उनमे जो असन्तोप व्याप्त हो रहा था उसको दूर करनेके लिए रखी गयी थी। स्वतन्त्र पाकिस्तानकी मांग रखकर लीगी नेताअोने मुसलिम जनताका ध्यान भोजन और स्वाधीनताकी वास्तविक समस्यानोकी अोरसे हटानेकी चेष्टा की। मुसलिम सम्प्रदायमे घृणा, भय और सन्देहके सिद्धान्तोका प्रचार किया गया और मनुप्यकी उन विध्वसात्मक प्रवृत्तियोको उत्तेजना देनेकी चेप्टा की गयी जो अन्ततोगत्वा मजहवी झगडोमे फूट पड़ी और जिसने मनुप्यको पशुकै स्तरपर पहुंचा दिया । समस्याका हल नहीं किन्तु अब जव कि पाकिस्तानके लक्ष्यकी सिद्धि-खण्डित रूपमे ही सही हो गयी है, समूची परिस्थिति मुसलमानोको एक नयी रोशनीमे दिखायी पड़ेगी। पाकिस्तानी राज्यके सामने बहुत-सी कठिनाइयाँ होंगी और उसे अनेक जटिल प्रश्नोको हल करना पड़ेगा । कुछ लोगो द्वारा यह मांग पेग की जायेगी कि इस्लामके सिद्धान्तोके आधारपर पाकिस्तानको धार्मिक राज्यका रूप दिया जाय । एक ओर जिन प्रान्तोको पंजावके अपने ऊपर हावी होनेका डर है वे केन्द्रको शिथिल बनानेपर जोर देगे, दूसरी ओर पंजावको पूर्वी वंगालका डर बना रहेगा जो कि अपनी जन-संख्याके वलपर पाकिस्तानकी केन्द्रीय सरकारपर हावी होगा। इसके अतिरिक्त और इन सवसे बढकर जनताकी गरीवी और वेकारीको दूर करनेका बुनियादी सवाल होगा। इन समस्याग्रोका हल होना कठिन देखकर पाकिस्तानके नेता जनताको भुलानेके लिए पाकिस्तानकी सीमाके सशोधनकी कोशिश कर सकते है । वे अपने अनुयायियोके सामने यह तर्क रख सकते है कि उनकी मुसीवतोंकी जड़ खण्डित पाकिस्तान है और जवतक उनका मूल स्वप्न पूरा नही होता तबतक जनताकी मुक्ति न होगी। इस प्रकार जनताकी आकाक्षायोकी पूर्ति न होनेके १. 'जनवाणी' अप्रैल, १९४७ ई०