संयुक्त मोर्चा और भारतीय कम्युनिस्ट १५७ विशेष उद्देश्यसे आपसमे संयुक्त मोर्चा कायम किया । समाजवादके विरोधी प्रजातन्त्र- वादियोंको भी यह लगा कि यदि फैसिज्मका उत्कर्ष होता है तो उससे प्रजातन्त्रकी क्षति होती है और प्रजातन्त्रके लोपकी सम्भावना उत्पन्न हो जाती है । 'समान शीलव्यसनेषु सख्यम्'की नीतिके अनुसार एक ही मुसीबतमे गिरफ्तार समुदाय और संस्थानोने समान शत्रुका मुकाबला करनेके लिए आपसमे एक संयुक्त मोर्चा कायम किया। इसी प्रकार चीनमे जब जापानका आक्रमण प्रबल वेगसे बढ़ने लगा तव राष्ट्रवादियों और कम्युनिस्टोने आपसकी लडाईको बन्द कर जापानके अाक्रमणका सफलताके साथ मुकाबला करनेके लिए एक सयुक्त मोर्चा कायम किया । संयुक्त मोर्चेकी कठिनाइयाँ एक विशेष अवसरपर किसी विशेष प्रश्नको लेकर भी क्षणिक संयुक्त मोर्चा कायम किया जाता है । यह सयुक्त मोर्चा व्यक्तियो और समुदायो दोनोके बीच हो सकता है । सयुक्त मोर्चा कायम करनेमे कई तरहकी कठिनाइयाँ पड़ा करती है । जो सस्थाएँ कलतक एक-दूसरेकी टीका-टिप्पणी किया करती थी और एक-दूसरेके नेतानोकी निन्दा किया करती थी, उनका किसी एक प्रश्नपर भी सयुक्त मोर्चा कायम करना दुष्कर होता है । पुरानी बाते जल्दी भुलायी नही जा सकती और व्यक्तिगत द्वेपके कारण नेता सयुक्त मोर्चेको अकसर कायम भी नही होने देते । यदि नेता दूरदर्शी नही है, समयकी आवश्यकता- को नहीं पहचानते और आपसके झगड़ोसे ऊपर नही उठ सकते तो संयुक्त मोर्चा साधारणतया नही कायम हो पाता । प्राय. जब दोनो ओरसे इसकी आवश्यकता अनुभव की जाती है या जनसमुदाय अपने नेताअोको इसके लिए विवश करता है, तभी संयुक्त मोर्चा कायम होता है। राष्ट्रपर विदेशी आक्रमण होनेसे या कोई सामान्य भारी खतरा उत्पन्न होनेसे संयुक्त मोर्चा सुगमतासे कायम हो जाता है । किन्तु साधारण अवस्थामे इसमे बड़ी अडचनें पड़ती है । जव दो सस्थानोमे संयुक्त मोर्चा कायम होता है तो उसकी शर्ते और मोर्चेका कार्यक्रम भी तय कर लिया जाता है । यद्यपि संस्थाएँ संयुक्त मोर्चा वनानेके बाद भी एक-दूसरेकी समालोचना करती रहती है, तथापि आलोचनाकी शैली बहुत कुछ बदल जाती है । यह भी देखनेमे पाता है कि सब शर्ते तय हो गयी और काम चल निकला, किन्तु कुछ समय बाद मोर्चा टूट गया, क्योकि एक दल संयुक्त मोर्चेमे प्रधान स्थान पानेकी अनुचित चेष्टा करता है, जिससे दूसरोको उसकी जिम्मेदारी और सद्भावनापर सन्देह होने लगता है। संयुक्त मोर्चेके तरीके कम्युनिस्टोकी भाषामे यह मोर्चा 'ऊपरसे' ( from above ) और 'नीचेसे' ( from below ) दो तरहसे कायम होता है । इन शब्दोका अर्थ हमको अच्छी तरह समझ लेना चाहिये । जब म्वाहिदा दो सस्थाओके नेताअोके दरमियान होता है तव कहा जाता है कि संयुक्त मोर्चा 'ऊपरसे' कायम हुआ । जव ऐसा कोई म्वाहिदा नही हो पाता तव साधारण सदस्योंके साथ मिलकर काम करनेकी चेष्टा की जाती है।
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