पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१७१

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१५८ राष्ट्रीयता और समाजवाद उनको बतलाया जाता है कि नेता स्वार्थी है या दूरदर्गी नहीं है, वह संयुक्त मोर्चेकी नितान्त आवश्यकताको नही महसूस करते । इसके विना जनताके आर्थिक और राजनीतिक संघर्ष सफलताके साथ नही चलाये जा सकते, अतः तुमको नेतामोंकी परवाह नहीं करनी चाहिये और हमारे साथ मिलजुलकर कार्य करना चाहिये । इसे नीचसे सयुक्त मोर्चा ( united front from below ) कहते है । जिस देशकी व्यवस्था ही ऐसी हो कि वहाँका शासनविधान राज्यमें एकसे अधिक दलकी रथापनाकी इजाजत नहीं देता, वहाँ ऊपरसे संयुक्त मोर्चेका प्रश्न ही नहीं उठता; वहाँ एक ही प्रकारकी विचारशैली राज्यसे स्वीकृत होती है । वहाँ तो विभिन्न विचार रखनेवाली सस्थाएँ होती ही नही । वहाँ विभिन्न विचारके व्यक्ति या छोटे समुदाय ही होते है ; इसलिए इन विभिन्न विचारके लोगोंको संयुक्त मोर्चेके लिए राजी करना पडता है । इसे 'नीचेसे संयुक्त मोर्चा' कह सकते है, पर इस प्रकारके सयुक्त मोर्चेकी कोशिश उन देशोमे भी की जाती है जहाँ एकरो अधिक विभिन्न विचारवाली सस्थाएँ मौजूद होती है । यह तभी होता है जव उनके नेताग्रोसे कोई समझौता हो नहीं पाता या उनसे समझौता करना इप्ट नहीं होता । तव साधारण सदस्योमे नेताओंके विद्ध प्रचार 'किया जाता है और उन्हे साथ काम करनेके लिए तैयार किया जाता है । जो सदस्य इस प्रकारसे प्रभावित हो अपनी पुरानी संस्था छोड़ देते है और दूसरी सरथामे शरीक हो जाते है उनके बारेमे यह नहीं कहा जा सकता कि उनके साथ संयुक्त मोर्चा स्थापित किया गया है । यह उन्हीके वारेमे कहा जा सकता है जो अपनी पुरानी संस्थामें रहते हुए सयुक्त मोर्चेके साथ पूरा सहयोग करते है । किन्तु यह साफ है कि नेताओके पीठ पीछे 'नीचेसे' सयुक्त मोर्चा कायम करना सम्भव नही है । इस प्रयत्नमें बहुत कम सफलताकी सम्भावना है । प्रत्येक संस्थाका अपना नेतृत्व और अपना अनुशासन रहता है । संस्थाका प्रत्येक सदस्य इनसे बँधा रहता है । नेतृत्वके प्रति उसकी श्रद्धा होती है । उसकी उपेक्षा कर साधारण सदस्योके साथ संयुक्त मोर्चा स्थापित करना माधारणत. सम्भव नहीं होता। एक ऐसी विराट सस्थामे जिसकी शाखाएँ दूरतक फैली हो और जिसका अनुशासन कुछ ढीला हो यह सम्भव है कि इस कार्यमे कुछ स्थानीय कमेटियोके साथ सयुक्त कार्य करनेका अवसर मिले । किन्तु यह वात बडे पैमानेपर नहीं हो सकती । यह एक ऐसी बात है जिसके समझनेमे देर न लगनी चाहिये, पर हमारे कम्युनिस्ट नाई कभी-कभी 'नीचेसे सयुक्त मोर्चा' के नारेको बुलन्द करते देखे जाते है । नेताअोके साथ समझौता करके ही किसी सस्थाका हार्दिक सहयोग प्राप्त हो सकता है और वही प्रभावशाली भी होता है । यह कहना कि हम साधारण सदस्योके साथ तो सयुक्त मोर्चा वनानेको तैयार है, किन्तु उनके नेतामोके साथ नहीं, कोरा पाण्डित्य होगा। यह तो वैसी ही बात होगी जैसी कि यदि कोई कहे कि हम पूंजीपतियोके विरुद्ध की गयी हडतालको समाप्त करनेके लिए समझौतेकी वातचीत तो करनेको तैयार है, किन्तु उनके साथ नहीं । हडतालको खतम करनेके लिए किसी न किसी समय पूंजीपतियोके साथ आपको वातचीत करनी ही होगी। उसी प्रकार सगठित जनताको संयुक्त कार्यके लिए आमंत्रित करना तवतक सम्भव नही